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प्रकृतिनाम
१५. सम्यक्त्व प्रकृति
क्रम
१६. सम्यग्मिथ्यात्व
१७. स्थिर नामकर्म
१८. शरीर के संयोगीभेव
श्वेताम्बर
जिस कर्म के उदय से जोब सर्वज्ञप्रणीत तत्त्व को श्रद्धा न
करे |
जिस कर्म के उदय से जीव को द्वेष हो । जिनधर्म में न राग हो और न
जिसके उदय से दाँत, हड्डी, स्थिर रहें । ग्रीवा आदि शरीर के अवयत्र
पांचों शरीर सम्बन्धी बन्धन होते हैं। नामकर्म के संयोगी भेद पन्द्रह
- दिगम्बर
जिस कर्म के उदय से सम्यग्दर्शन में चल, मलिन आदि दोष
लगं ।
जिसके उदय से जीव के तत्त्व और अतत्त्व श्रद्धातुरूप दोनों प्रकार के भाव हो ।
जिसके उदय से शरीर के तातु- उपधातु अपने-अपने स्थान पर स्थिर रहें। जिससे उपसर्ग, तपस्या आदि अन्य कष्ट सहन किये जा सकते हैं।
पांचों शरीर के संयोगी भेद पन्द्रह होते हैं ।
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कर्मविपाक