Book Title: Karmagrantha Part 1
Author(s): Devendrasuri, Shreechand Surana, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Marudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur

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Page 251
________________ এ জখ उपदेश दिये हुए धर्म का अवर्णवाद करने से, आचार्य और उपाध्याय का अवर्णवाद करने से, चारों प्रकार के संघ का अवर्णवाद करने से तथा परिपक्व तप और ब्रह्मचर्य के धारक देवों का अवर्णवाद करने से । तत्त्वार्थसूत्रगत पाठ केवलिश्रुतसंघधर्मदेवावर्णवादो दर्शनमोहस्य। -अ० ६, सू० १३ चारित्रमोहनीय कर्मबन्ध सम्बन्धी पाठ मोहणिज्जकम्मासरीरप्पओग पुच्छा, गोयमा ! तिव्वकोह्याए तिव्वमाणयाए तिन्चमायाए तिव्वलोभाए तिब्वदंसणमोहणिज्जयाए तिब्वचारितमोहणिज्जाए। -मा० प्र० श० २, उ० १ ० ३५१ ___ अर्थ-(चारित्र) मोहनीय कर्म के शरीर का प्रयोगबन्ध किस प्रकार होता है ? गौतम : तीन क्रोध करने से, तीन मान करने से, तीन माया करने से, तीन लोभ करने से, सीन दर्शनमोहनीय से और तीव्र चारित्रमोहनीय से । तस्थासूत्र का सम्बन्धित पाठ __कषायोदयात्तीम्रपरिणामश्चारित्रमोहस्य। -अ० ६. स० १४ (५) आयुकर्म ___ आयकर्म के नारक, तिर्यंच, मनुष्य और देव ये चार भेद हैं। इनके प्रत्येक के पृथक्-पृथक् अपने-अपने बन्ध के कारण हैं। इनमें से नारक, तिर्यंच, मनुष्य और देव आयु बन्ध के कारणों के पाठों का संकेत बार सामान्यतः सभी आयुओं के बन्ध के कारण का पाठ उद्धृत करते हैं। १. जो दोष न हों, उनका भी होना बतलाना, निन्दा करना अवर्णवाद है।

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