Book Title: Karmagrantha Part 1
Author(s): Devendrasuri, Shreechand Surana, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Marudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
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कर्म साहित्य विषयक समान असमान मन्तव्य
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सामान्यतः कर्म की बन्ध, उदय - उदोरगा और सत्ता की स्थिति एवं गुणस्थानों, मार्गणाओं में कर्मों के बन्ध आदि के सम्बन्ध में सैद्धान्तिकों, कर्मग्रन्थकारों और श्वेताम्बर दिगम्बर आचार्यों द्वारा रचित कर्मग्रन्थों के विषय प्रतिपादन में अधिकांश समानता दृष्टिग. चर होती है । यदि कथंचित् भिन्नता भी है तो वह जिज्ञासा की दृष्टि से कर्मविषयक गहन अध्ययन और मनन के लिए ग्राह्य मानकर 'वादे वादे जायते तत्त्वबोधः' के निकष पर परीक्षायोग्य है ।
श्वेताम्बर एवं दिगम्बर कर्मग्रन्थों में जीव शब्द की व्याख्या, उपयोग का स्वरूप, केवलज्ञानी के विषय में संज्ञित्व तथा असंज्ञित्व का व्यवहार, वायुकाधिक शरीर की ध्वजाकारता, छादमस्थिक के उपयोगों का कालमान, भावलेश्या सम्बन्धी स्वरूप दृष्टान्त आदि, चौदह मार्गणाओं का अर्थ, सम्यक्त्व की व्याख्या, क्षायिक सम्यक्त्व, केवली में द्रव्यमन का होना, गर्भज मनुष्यों की संख्या के सूचक उन्तीस अंक, इन्द्रियमाणा में द्वीन्द्रिय आदि का और कायमार्गणा में तेजस्काय आदि का विशेषाधिकत्व, वक्रगति में विग्रह की संख्या, गुणस्थान में उपयोग की संख्या, कर्मबन्ध के हेतुओं की संख्या दो, चार, पाँच होना, सामान्य तथा विशेष बन्धहेतुओं का विचार - ये विषय समान रूप से प्राप्त होते हैं। दोनों की वर्णन शैली समान है । इनके अतिरिक्त कुछ ऐसे विषय हैं, जिनमें कुछ अंशों में भिन्नता होते हुए भी अधिक अंशों में समानता है ।
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