Book Title: Karmagrantha Part 1
Author(s): Devendrasuri, Shreechand Surana, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Marudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
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कर्मविपाक ग्दष्टियों से, असंयत सम्यग्दृष्टि पर्याप्तकों से, संयतासंयत सम्यग्दृष्टि पर्याप्तक संख्यात वर्ष की आयु वालों में से उत्पन्न होते हैं ?
हे गौतम ! तीनों में से ही अच्युत स्वर्ग तक उत्पन्न होते हैं । तत्त्वार्थसूत्र का पाठ
सरागसंयम संयमाऽसंग्रमाऽकामनिर्जराबालतपांसि देवस्य । सम्यक्त्वं च ।
-अ० ६, सू० २०-२१ साधारणतः चारों आयु के बन्ध का कारण
एगंतवाले णं मणुस्से नेरइयाउयंति पकरेइ, तिरियाउयंति पकरेइ, मणुस्साउयंपि पकरेइ देवाउयपि पकरेइ ।।
-थ्याख्या प्राप्ति, श० १, ३० ८, सू० ६३ अर्थ--एकान्तबाल (बिना शील और प्रत वाला) मनुष्य नरकायु भी बांधता है, तिथंच आयु भी बांधता है, मनुष्य आयु भी बांधता है और देवायु का भी बन्ध करता है। तत्त्वार्थसूत्र का पाठ निःशीलवतत्वं च सर्वेषाम् ।
-०६, सू० १६ (६) नामकर्म
नामकर्म के दो प्रकार हैं-शुभ और अशुभ । दोनों के बन्धकारणों सम्बन्धी पाठ यह है
सुभनामकम्मा सरीर पुच्छा ? गोयमा ! कायउज्जुययाए भावुज्जुययाए भासुज्जुययाए अविसंवादणजोगेणं सुभनामकम्मा सरीरजावापयोगबन्धे, असुभनामकम्मा सरीर पुच्छा ? गोयमा ! कायअणुज्जययाए जाब विसंवायणाजोगेणं असुभनामकम्मा जाव पयोगवन्धे ।
-व्याख्या प्रशस्ति शE ०६