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प्रथम कर्मग्रन्
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(४) जिस कर्म के उदय से जीव का शरीर गाय की जीभ जैसा खुरदरा, कर्कश हो, वह खरस्पर्शनामकर्म है। इसे कर्कश स्पर्शनामकर्म भी कहते हैं ।
(५) जिस कर्म के उदय से जीव का शरीर बर्फ जैसा ठण्डा हो, वह शीतस्पर्शनामकर्म है ।
(६) जिस कर्म के उदय से जीव का शरीर आग जैसा उष्ण हो, वह उष्णस्पर्शनामकर्म है ।
( 19 ) जिस कर्म के उदय से जीव का शरीर घी के समान चिकना हो, वह स्निग्धस्पर्शनामकर्म है ।
(८) जिस कर्म के उदय से जीव का शरीर बालू जैसा रूखा हो, वह रूक्षस्पर्शनामकर्म है 1
अब आगे की गाथा में वर्गचतुष्क के इन बीस भेदों का शुभ और अशुभ इन दो भेदों में वर्गीकरण करके उनके नाम बतलाते हैं ।
नीलं कसिणं दुगंध तिस कडुयं गुरु खरं रुक्तं । सीर्य च असूनवमं इकारसगं शुभं से ।।४२ ॥ गाथार्थ - वर्णचतुष्क की पूर्वोक्त बीस प्रकृतियों में से नील, कृष्ण, दुर्गन्ध, तिक्त, कटु, गुरु, कर्कश, रूक्ष और शोत ये नो प्रकृतियाँ अशुभ हैं और शेष रही ग्यारह प्रकृतियां शुभ हैं। विशेषार्थ - वर्ण, गन्ध, रस और स्पर्श नामकर्म के बीस भेदों में अशुभ और शुभ प्रकृतियों के नाम इस प्रकार हैंअशुभ वर्णनामकर्म-कृष्णवर्ण, नीलवर्ण । अशुभ गन्धनामकर्म - दुरभिगन्ध ( दुर्गन्ध ) | अशुभ रसनामकर्म - तिक्तरस, कटुरस ।
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