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प्रथम कर्मग्रन्थ
(३) जिस कर्म के उदय से जीव का शरीर सिन्दूर जैसा लाल हो, वह लोहितवर्णनामकर्म है ।
(४) जिस कर्म के उदय से जीव का शरीर हल्दी-जंसा पीला हो, वह हरिद्रवर्ण नामकर्म है ।
(५) जिस कर्म के उदय से जीव का शरीर शंख-जैसा सफेद हो, उसे सितवर्णनामकर्म कहते हैं ।
अब आगे की गाथा में गन्ध, रस और स्पर्श नामकर्म के भेदों को बतलाते हैं।
सुरहिदुरही रसा पण तितकडुकसाय अंबिला महुरा । फासा गुरुलहुमिउखरसोउण्ह सिणिद्धरुवखऽहा ॥४१॥ गाथार्य-सुरभि-सुगन्ध और दुरभि-दुर्गन्ध ये दो गन्धनामकर्म के भेद हैं । तिक्त, कटु, कषाय, अम्ल और मधुर ये रसनामकर्म के पाँच भेद हैं तथा स्पर्शनामकर्म के गुरु, लयु, मृदु, खर, शीत, उष्ण, स्निग्ध और रूक्ष-ये आठ भेद हैं । विशेषार्थ-वर्णनामकर्म के पांच भेदों का कथन करने के पश्चात अब शेष रहे गन्ध, रस, स्पर्श नामकर्म के मंद और उनके लक्षण क्रमशः यहाँ कहते हैं।
गन्धनामकर्म के दो भेद हैं-(१) सुरभिगन्ध, (२) दुरभिगन्ध नामकर्म ।
(१) जिस कर्म के उदय भ जीव के शरीर में कपूर, कस्तूरी आदि पदार्थों-जैसी सुगन्धि हो, उसे सुरभिगन्धनामकर्म कहते हैं।
तीर्थंकर आदि के शरीर सुगन्धित होते हैं।
(२) जिस कर्म के उदय से जीव के शरीर में लहसुन, सड़े-गले पदार्थों जैसी गन्ध हो, वह दुरभिगन्धनामकर्म है।