Book Title: Karmagrantha Part 1
Author(s): Devendrasuri, Shreechand Surana, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Marudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
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कर्मबन्ध के विशेष कारण-सम्बन्धी आगम पाठ
मिथ्यात्व, अविरति, प्रमाद, कषाय और योग के सद्भाव से संसारी जीव सदैव कर्मबन्ध करता रहता है। इसीलिए इन्हें कर्मबन्ध का सामान्य कारण कहा जाता है। लेकिन इनकी विद्यमानता के साथ ही जिन विशेष कारणों से उस-उस कर्म का जो विषेष रूप से बन्ध होता है उन्हें उस-उस कर्म के बन्ध का विशेष कारण कहते हैं ।
ग्रन्थ में ग्रन्थकार ने विभिन्न कर्मों के बन्ध-विषयक विशेष कारणों का संकेत किया है। इन कारणों के कथन का आधार आगम हैं। अतः पाठकों की जानकारी के लिए विशेष बन्धकारण सम्बन्धी आगमगत पाठों को यहाँ प्रस्तुत किया जा रहा है । आगम पाठ निम्नप्रकार हैं(१-२) ज्ञानावरण-वर्शनावरण
णाणावरणिज्जकम्मासरीरम्पओगबन्धण भन्ते ! कस्स कम्मरस उदएणं ? गोयमा ! नाणपडिणीययाए णाण निगहबणाए णाणंतराएणं णाणप्पदोसणं णाणच्चासायणाए गाणविसंवादणाजोगेण ... "एवं जहा णाणावरणिज्ज नवरं दसणनाम घेत्तव्वं ।
- पास्याप्रज्ञप्ति. १०८,०६, सू० ७५-७६ अर्थ-भगवन् ! किस कर्म के उदय से ज्ञानावरणीय कार्मण शरीर का प्रयोगबन्ध होता है ?
गौतम ! ज्ञानी से शत्रुता करने मे, ज्ञान को छिपाने , ज्ञान में विघ्न डालने स, ज्ञान में दोष निकालने से, ज्ञान का अविनय करने