Book Title: Karmagrantha Part 1
Author(s): Devendrasuri, Shreechand Surana, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Marudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur

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Page 246
________________ १६६ कमविपाक प्रकृतियों तथा पूर्वोक्त ८ पिंडप्रकृतियों के ३५ भेदों के अतिरिक्त जो बन्धन और संघातन नामकर्म को शरीर नामकर्म में ग्रहण कर लिया पा, उन दोनों के ५, ५ उत्तरभेदों तथा वर्ण, गन्ध, रस और स्पर्श के क्रमशः ५, २, ५, ८ उत्तरभेदों को मिलाने से ६३ भेद होते हैं -- बन्धन ५-- औदारिक बन्धन, वैक्रिय बन्धन, आहारक बन्धन, तैजस बन्धन, कार्मण बन्धन । संघातन ५-औदारिक संघातन, वैक्रिय संघातन, आहारक संघातन, तेजस संघातन, कार्मण संघातन । वर्ग ५ --कृष्ण, नील, लोहित, हारिद्र और शुक्ल । गन्ध २-सुरभिः दुरभि । रस ५--तिक्त, कटु, कषाय, अम्ल और मधुर । स्पर्श-कर्कश, मृदु, गुरु, लघु, शीत, उष्ण, स्निग्ध, रूक्ष । १०३ भेद-पूर्वोक्त ६३ भेदों में बन्धन के जो ५ भेद ग्रहण किये हैं, उनके स्थान पर निम्नोक्त १५ भेद ग्रहण करने से नामकर्म के १०३ भेद होते हैं बन्धन १५-औदारिक औदारिक बन्धन, औदारिक-तैजस बन्धन, औदारिक-कार्मण बन्धन, औदारिक-तैजस-कार्मण बन्धन, वैविन्य-वैक्रिय बन्धन, वैक्रिय-तेजस बन्धन, वैक्रिय-कार्मण बन्धन, वैक्रिय-तेजस-कार्मण मन्धन, आहारक-आहारक बन्धन, आहारक-तैजस बन्धन, आहारककार्मण बन्धन, आहारफ-तैजस कार्मण बन्धन, तैजस-तेजस बन्धन. तंजस-कार्मण वन्धन, कार्मण-कार्मण बन्धन 1 अर्थात् ६३ प्रकृतियों में बन्धन के पांच भेद के स्थान पर १५ भेद जोड़ने से १०३ भेद होते हैं। (६३-५-८+१५=१०३)

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