Book Title: Karmagrantha Part 1
Author(s): Devendrasuri, Shreechand Surana, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Marudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur

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Page 244
________________ कर्मविपाक प्रत्येकप्रकृतियाँ (३६) पराधात, (४) उच्छवास, (७८) आतप (७६) उद्योत, (50) अगुरुलघु, (८१) तीर्थकर, (८२) निर्माण, (३) उपघात 1८४) अस, ८५.) चादर, ५६) पर्यापन, (८७) प्रत्येक, ८) स्थिर, (८६) शुभ, भग, . ' राबर ! आदेश. (१३) यशःकोति, (६४) स्थावर, (६५) मूक्ष्म, (६६) अपर्याप्त, (६५) साधारण (६८) अस्थिर, (६६) अशुभ, (१००) दुभंग, (१०१) दुःस्वर, (१०२) अनादेय, (१०) अयशःकीर्ति । (७) गोत्रकर्म की उत्तर प्रकृतियां - २ (१) उच्चगोत्र, (२) नीचगोत्र । (८) अन्तरायकर्म को उत्तरप्रकृतियाँ. ५ (१) दानान्तराय, (२) लाभान्तराय, (३) भोगान्त राय, (४) उपभोगान्तराय, (५) वीर्यान्तगय। नामकर्म की प्रकृतियों की गणना का विशेष स्पष्टीकरण ज्ञानावरणादि आठ कर्मों की उत्तरप्रकृतियों की गणना में नामकर्म को छोड़कर शेष कर्मों की जितनी संख्या ब्रतलाई है उतने ही उन-उन के उत्तरगदों के नाम निर्दिष्ट हैं । लेकिन नामकर्म के उत्तरभेदों की संख्या ४२. ६७,६३ और १०३ बताई गई है। इस भिन्नता का कारण अपेक्षा दुटियों से है। अब उनकी गणना का क्रम इस प्रकार समझना चाहिए. . ४२ भेद ... १४ पिंडप्रकृतियाँ, १० असशदक, १० स्थावरदशक और ८ प्रत्येकप्रकृतियाँ । इनके नाम ये हैं१४ पिडप्रकृतियाँ... गति, जाति, शरीर, अंगोपांग, बन्धन, संघा वन, संहनन, संस्थान, वर्ण, गन्ध, रस, स्पर्श, आनुपूर्वी, विहायोगति।

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