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प्रथम कर्मग्रन्थ
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१० त्रसदकशक - ब्रस, बादर, पर्याप्त, प्रत्येक, स्थिर, शुभ, सुभग. सुस्वर, आदेय, यशःकीति ।
स्थावरदशक - स्थावर, सूक्ष्म, अपर्याप्त, साधारण, अस्थिर, अशुभ, दुर्भग, दुःस्वर, अनादेय, अथशः कीर्ति । प्रत्येकाष्टक - पराघात, उच्छ्वास, आतप उद्योत अगुरुलवू, तीर्थकर, निर्माण, उपघात ।
६७ भेद - ( इनमें १० सदशक १० स्थावरदशक और प्रत्येकाष्टक प्रकृतियों के नाम पूर्वोक्तवत् हैं ।) १४ पिंडप्रकृतियों में से बन्धन और संघातन नामकर्म के भेदों को शरीर नामकर्म के अन्तर्गत ग्रहण किया है । शेष रही १२ पिंडप्रकृतियों में मे वर्ण, गन्ध, रस स्पर्श के भेद न करके शेष = प्रकृतियों के ३५ भेद होते हैं । उनको ग्रहण करने से ६७ भेद हो जाते हैं। ८ पिंडप्रकृतियों के ३५ भेद ये हैं
गति ४ - नरक, तिर्यंच, मनुष्य, देव |
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जाति ५ – एकेन्द्रिय, द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय, पंचेन्द्रिय । शरीर ५ - औदारिक, वैकिय, आहारक, तैजस, कार्मण । अंगोपांग ३ - औदारिक अंगोपांग, वैक्रिय अंगोपांग, आहारक अंगोपांग |
संहनन ६ - वज्रऋषभनाराच, ऋषभनाराच, नाराच, अर्द्धनाराच कीलिका, सेवार्त ।
संस्थान ६ – समचतुरस्र, न्यग्रोध, सादि, वामन, कुब्जक, हुण्डक । आनुपूर्वी ४ - नरकानुपूर्वी तिचानुपूर्वी, मनुष्यानुपूर्वी, देवानुपूर्वी । विहायोगति २ - शुभ विहायोगति, अशुभ विहायोगति ।
६३ भेद – इनमें १०
सदशक १० स्थावरदशक, प्रत्येक
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