Book Title: Karmagrantha Part 1
Author(s): Devendrasuri, Shreechand Surana, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Marudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
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कर्मविपाक
(२) जिस कर्म के उदय से शरीर की आकृति न्यग्रोध (वटवृक्ष) के समान हो, अर्थात् शरीर में नाभि से ऊपर के अवयव पूर्ण-मोटे हों और नाभि से नीचे के अवयव हीन-पतले हों, उसे न्यग्रोध-परिमंडल-संस्थाननामकर्म कहते हैं।
(३) जिस कर्म के उदय से नाभि के ऊपर के अवयव हीन-पतले और नाभि से नीचे के अवयव पूर्ण-मोटे हों, वह सादि-संस्थाननामकर्म है। न्यग्रोध-परिमण्डल-संस्थान से विपरीत शरीर-अवयवों की आकृति इस संस्थान बालों की होती है ।
(४) जिस कर्म के उदय मे शरीर कुबडा हो, वह करन-संस्थान नाम कर्म है।
(५) जिस कर्म के उदय से शरीर वामन (बौना) हो, उसे वामनसंस्थाननामकर्म कहते हैं।
(६) जिस कर्म के उदय से शरीर के सभी अवयव बेडौल होंयथायोग्य प्रमाण युक्त न हों, उगे हुंड-संस्थान नामकर्म कहते हैं।
संस्थान नामकर्म के भेदों का निरूपण करने के बाद वर्ण नामकर्म के भेद और लक्षण बतलाते हैं।
वर्ण नामकर्म के उदय से शरीर में कृष्ण, गौर आदि वर्ण होते हैं । वर्ण नामकर्म के पांच भेद इस प्रकार हैं
११) कृष्ण, (२) नील, (३) लोहित, (४) हारिद्र, और (५) सित । इनके लक्षण यह है
(१) जिस कर्म के उदय से जीव का शरीर कोयले-जैसा काला हो, वह कृष्णवर्णनामकर्म है।।
(२) जिस कर्म के उदय से जीव का शरीर तोते के पंख-जैसा हरा हो, वह नीलवर्णनामकर्म है ।