Book Title: Karmagrantha Part 1
Author(s): Devendrasuri, Shreechand Surana, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Marudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
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उनके जीवन के सम्बन्ध में जहाँ-कहीं उल्लेख हुआ है, वह अधूरा ही है, तथापि गुजरात और मासवा में उनका विहार इस अनुमान की सूचना कर सकता है कि के गुजरात या मालका में जन्मे होंगे । उनकी जाति व माता-पिता के सम्बन्ध में साधन के अभाव में किसी प्रकार के अनुमान को अवकाश नहीं है।
विद्वत्ता और चारित्रतत्परता-इसमें कोई संदेह नहीं कि श्री देवेन्द्रमूरि जैनशास्त्र के गम्भीर विद्वान थे। इसकी साक्षी उनके ग्रन्थ्य ही दे रहे हैं । गुर्वावली के वर्णन से पता चलता है कि वे षड्दर्शन के मामिक विद्वान थे और इसी से मन्त्रीश्वर वस्तुपाल तवा अन्य-विद्वान् उनके व्याख्यान में आया करते थे । विद्वत्ता
और ग्रन्थ-लेखन-ये दो अलग अलग कार्य हैं और यह आवश्यक नहीं कि विद्वान को ग्रन्थ लिखना ही चाहिए । परन्तु देवेन्द्रसूरि का जैनागम-विषयक ज्ञान तलस्पर्शी था, यह बात असंदिग्ध है । उन्होंने कर्मग्रन्थ, जो नदीन कर्मग्रन्थ के नाम से प्रसिद्ध हैं, सटीक रचे हैं। टीका इतनी विशद और सप्रमाण है कि उसे देखने के बाद प्राचीन कर्मग्रन्य या उसको टोकाएँ देखने की जिज्ञासा एक तरह से शान्त हो जाती है। संस्कृत और प्राकृत भाषा में रचे हुए उनके अनेक ग्रन्थ इस भान की स्पष्ट सूचना करते हैं कि वे संस्कृत तथा प्राकृत भाषा के प्रखर पण्डित धे।
श्री देवेन्द्रसूरि विद्वान होने के साथ-साथ चारित्रधर्म में बड़े दद थे । इसके प्रमाण में इनना ही कहना पर्याप्त है कि उस समय क्रियाशिथिलता को देम्बकर श्री जगच्चन्द्रमुरि ने बड़े पुरुषार्थ और निस्सीम त्याग मे जो कियोद्धार किया था, उसका निर्वाह श्री देवेन्द्रसूरि ने किया । ___ गुरु -श्री देवेन्द्रमूरि में गुरु थी जगच्चन्द्रसूरि थे, जिन्हान थी देवभद्र उपाध्याय की मदद से क्रियोद्धार का कार्य प्रारम्भ किया था। इस कार्य में उन्होंने अपनी असाधारण त्याग-वृत्ति दिखाकर औरों के लिए आदर्श उपस्थित किया था।
परिवार-श्री देवेन्द्रसूरि के शिष्य परिवार के बारे में विशेष जानकारी नहीं मिलती है । परन्तु इतना लिखा मिलता है कि अनेक संविग्न मुनि उनके आथित थे । गुर्वावली में उनके दो शिष्य श्री विद्यानन्द और श्री धर्मकीर्ति का उल्लेख मिलता है । ये दोनों भाई थे। विद्यानन्द नाम सूरिपद के पीछे का है,