Book Title: Karmagrantha Part 1
Author(s): Devendrasuri, Shreechand Surana, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Marudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
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प्रथम कर्मग्रन्थ
प्रत्यक्ष तब कर सकते हैं, जबकि वे किसी संजी के मन में झलक रहे हों, अन्यथा नहीं। सैकड़ों योजन दूर रहे किसी ग्राम, नगर आदि को मनःपर्ययज्ञानी नहीं देख सकते। लेकिन यदि ये ग्राम आदि किसी के मन में स्मृति के रूप में विद्यमान हैं, तब उनका साक्षात्कार कर सकते हैं । इसी प्रकार अन्य-अन्य उदाहरण समझने चाहिये।
मनःपर्ययज्ञान की विशेषता अवधिज्ञान का विषय भी रूपी है, और मनःपर्ययज्ञान का विषय भी रूपी है। क्योंकि मन भी पौद्गलिक होने से रूपी है, फिर अवधि. ज्ञानी मन तथा मन की पर्यायों को क्यों नहीं जान सकता? तो इसका समाधान यह है कि अवधिज्ञानी मन को तथा उसका पीयों को भी प्रत्यक्ष कर सकता है, किन्तु उसमें झलकते हुए द्रव्य, क्षेत्र, काल और भाव को प्रत्यक्ष नहीं कर सकता है जैसे कि सैनिक दूर रहे अपने साथियों को दिन में झण्डियों की विशेष प्रक्रिया द्वारा और रात्रि में प्रकाश की प्रक्रिया द्वारा अपने भावों को समझाते हैं और उनके भाव समझते हैं। किन्तु अप्रशिक्षित व्यक्ति मण्डियाँ, प्रकाश आदि को देख सकता है और उनकी प्रक्रियाओं को भी देख सकता है किन्तु उनके द्वारा व्यक्त मनोभावों को नहीं समझ सकता है। इसी प्रकार अवधिझानी मन तथा मन की पर्यायों को प्रत्यक्ष तो कर सकता है, किन्तु मनोगत द्रव्य, क्षेत्र, काल और भाव को प्रत्यक्ष नहीं कर सकता है, जबकि मनःपर्ययज्ञानी कर सकता है। यह उसका विशेष विषय है। यदि यह उसका विशेष विषय न होता तो मनःपर्ययज्ञान को अलग से मानना ही व्यर्थ है।
केवलज्ञान-विश्व में विद्यमान सम्पूर्ण द्रव्यों को, उनकी त्रिकालभूत, वर्तमान और भविष्य में होने वाली समस्त पर्यायों सहित युगपत् (एक साथ) जानना केवलज्ञान कहलाता है। अर्थात् जो ज्ञान किसी की