Book Title: Karmagrantha Part 1
Author(s): Devendrasuri, Shreechand Surana, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Marudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
View full book text
________________
कर्मविपाक इन्द्रियों और मन के साथ गुणा करने से छह-छह भेद हो जाते हैं, जैसे-स्पर्शनेन्द्रिय, रसनेन्द्रिय, घ्राणेन्द्रिय, चक्षुरिन्द्रिय, श्रोत्रेन्द्रिय और मन का अर्थावग्रह के साथ संयोग करने से अर्थावग्रह के निम्नलिखित छह भेद हो जाते हैं
(१) स्पर्श नन्द्रिय अथावग्रह. (२) रसनेन्द्रिय-अर्थातग्रह (३) घ्राणेन्द्रिय-अर्थावग्रह, (४) चक्षुरिन्द्रिय अर्थावग्रह, (५) धोत्रेन्द्रिय-अर्थावग्रह
और (६) मन-अर्थावग्रह । इसी प्रकार पाँच इन्द्रियों और मन के साथ क्रमशः ईहा, अवाय और धारणा को जोड़कर उन-उनके भी छह-छह भेद कर लेना चाहिए। __ अर्थावग्रह से लेकर धारणा तक इन चारों के छह-छह भेदों को मिलाने से कुल चौबीस भेद होते हैं तथा इन भेदों में व्यंजनावग्रह के चार भेदों को और मिलाने से मतिज्ञान के कुल अट्ठाईस भेद हो जाते हैं। ये भेद पृष्ठ २७ पर दी गई तालिका से स्पष्ट ज्ञात हो जाते हैं।
इस प्रकार मतिज्ञान के अट्ठाईस भेद बतलाने के अनन्तर अब ३३६ और ३४० भेदों को समझाते है
ज्ञान का कार्य पदार्थों को जानना है। क्षयोपशम की तरतमता में ज्ञान कभी एक प्रकार के पदार्थों को तो कभी अनेक प्रकार के पदार्थों को जानता है। कभी पदार्थ का शीघ्र शान हो जाता है तो कभी विलम्ब से होता है, इत्यादि । अतः पाँच इन्द्रियों और मन-- इन छह साधनों से होने वाले मतिज्ञान के अर्थावग्रह, ईहा, अवाय', धारणा के रूप से जो कुल चौबीस भेद होते हैं वे क्षयोपशम और विषय
१. नन्दीसूत्र २६, ३१. ३२, ३३ ।