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वर्मविपाक
संज्वलन-क्रोध. मान, माया, लोभ ।'
उक्त चारों प्रकार को चार-चार कषायों को संक्षेप में कहने के लिए 'चतुष्क' या 'चौकड़ी' शब्द का प्रयोग किया जाता है । जैसे अनन्तानुबन्धी चतुष्क या अनन्तानुबन्धी चौकड़ी कहने से अनन्तानुबन्धी क्रोध, मान, माया, लोभ इन चारों का ग्रहण किया जाता है। इसी प्रकार अप्रत्याख्यानावरण, प्रत्याख्यानावरण और संज्वलन चतुष्क के लिए भी समझ लेना चाहिए ।
कषायों के भेदों का कथन करने के अनन्तर अब नोकषाय-मोहनीय के स्वरूप का कथन करते हैं।
नोकषाय - जो काय तो न हो, किन्तु कषाय के उदय के साथ जिसका उदय होता है अथवा कपायों को पैदा करने में, उत्तेजित करने में सहायक हो, उसे नोकषाय कहते हैं। हास्य, रति आदि नोकषाय के प्रकार हैं, जिनका कथन यथाप्रसंग किया जा रहा है। इस विषय का एक श्लोक इस प्रकार है
कवायसहवतित्वात कषायप्रेरणावपि ।
हास्याविनवकस्मोक्का नोकषायकवायता ॥ कषायों के सहवर्ती होने लगे और कषायों के सहयोग से पैदा होने से एवं कषायों को उत्पन्न कराने में प्रेरक होने मे हास्यादि नोकषायों का अन्य कषायों के साथ सम्बन्ध समझ लेना चाहिए अर्थात् १. कसायवेय गिज्जे णं मने ! ऋतिविधे पण्णते?
गोयमा 1 मोलस विधे पण्णते, तं बहा- अणतपणुवन्धी कोहे, अणंताणबंधी माणे, अ० माया, लोभे, अपच्चरखाणे कोहे एवं माण, माया, लोभे, पच्चक्त्रणावरणे कोहे एवं माणे, माया, लोभे, संजलणा कोहे एवं माणे माया लोभे ।
-प्रज्ञापना, कर्मबंधपर २३, उ. २