Book Title: Karmagrantha Part 1
Author(s): Devendrasuri, Shreechand Surana, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Marudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
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कर्मविपाक
जिस कर्म के उदय से पूर्वगृहीत औदारिकशरीर पुद्गलों के साथ गृह्यमाण औदारिक पुद्गलों का परस्पर सम्बन्ध होता है, वह औदारिक-औदारिकबन्धननामकर्म है।
जिस कर्म के उदय से औदारिकशरीर पुद्गलों का तंजस पुद्गलों के साथ सम्बन्ध हो, वह औदारिक-तैजसबन्धननामकर्म है।
जिस कर्म के उदय से औदारिकशरीर पुद्गलों का कार्मण पुद्गलों के साथ सम्बन्ध हो, वह औदारिक-कार्मणबन्धननामकर्म है।
इसी प्रकार वैक्रिय वैक्रियबन्धननामकर्म आदि अन्य सभी का अर्थ समझ लेना चाहिए।
औदारिक, वैक्रिय, आहारक शरीरों के पुद्गलों का परस्पर सम्बन्ध नहीं होता है, अर्थात् औदारिक के साथ औदारिकशरीर के पुद्गलों का ही सम्बन्ध हो सकता है; वैक्रिय, आहारक शरीर के पुद्गलों का नहीं । इसी प्रकार वैक्रिय, आहारक शरीरों के लिए भी समझ लेना चाहिए। चकि ये परस्पर विरुद्ध गुणधर्मी हैं, इसलिए उनके सम्बन्ध कराने वाले नामकर्म भी नहीं है।
अब संहनन नामकर्म के भेदों को बतलाते हैं--
तंजस शरीर के साथ संयोग करने से बनने वाले भंगऔदारिक-तेजस, वैफिय-नंजस, आहारक-तैजस । कार्मण शरीर के साथ संयोग करने से मानने वाले भंगऔदारिक-फार्मण, बैंक्रिय कार्मण, आहारक-कार्मण, तंजस-कार्मण । तैमस-कार्मण शरीर का युगपत संयोग करने से जमने वाले भंग
औदारिक-से जल-कार्मण, झिम-तैजम-कामंण, आहरका-तेजस-कार्मण । [पूरा नाम कहने के लिए प्रत्येक के साथ बन्धननामकर्म जोड़ दें।।