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प्रथम कर्मग्रन्थ
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इस प्रकार ओदारिक बादि तीन शरीरों में से प्रत्येक के मूल शरीर के पुद्गलों के साथ संयोग करने से, प्रत्येक का तंजसशरीरपुद्गलों के साथ संयोग होने से तथा प्रत्येक का कार्मणशरीर पुद्गलों के साथ संयोग होने से बनने वाले तीन-तीन भागों को जोड़ने में नौ भेद बनते हैं ।
औदारिक, वैक्रिय और आहारक शरीरों में से प्रत्येक का तेजसकार्मण शरीर पुद्गलों के साथ युगपत् संयोग करने में तीन भेद बनते हैं, जैसे औदारिक- तेजस - कार्मण आदि तथा तैजस, कार्मण में से प्रत्येक का स्वकीय और अन्य शरीर के पुद्गलों के साथ संयोग करने से और तीन भंग बनते हैं। जैसे तेजस तेजसबन्धन तैजस-कार्मणबन्धन, कार्मण-कार्मणबन्धन |
इस प्रकार पूर्वोक्त नौ, तीन और तीन इन कुल भंगों को जोड़ने मे बन्धननामकर्म के पन्द्रह भेद हो जाते हैं। जिनके नाम क्रमश: इस प्रकार हैं- (१) औदारिक-औदारिकबन्धननाम, (२) औदारिक- तैजसबन्धननाम, (३) औदारिक कार्मणबन्धननाम, (४) वैक्रिय-वैक्रियबन्धननाम, (५) वैक्रिय तैजसबन्धननाम, (६) वैक्रिय - कार्मणबन्धननाम, (७) आहारक आहारकबन्धननाम (८) आहारक- तैजसबन्धननाम, ( 8 ) आहारक- कार्मणबन्धननाम (१०) औदारिक-तेजस - कार्मणबन्धननाम, (११) क्रिय- तैजस-कार्मणबन्धननाम, (१२) आहारक- तेजस - कार्मणबन्धननाम, (१३) तैजस- तेजसबन्धननाम, (१४) तेजस - कार्मणबन्धननाम और (१५) कार्मण कार्मणबन्धननाम । इनका अर्थ यह है कि
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१. प्रकारान्तर से बन्धननामकर्म के पन्द्रह भेदों को गिनने की सरल गेति । मूल शरीर के साथ संयोग करने से बनने वाले भंग
औदारिक और वैक्रिय-वैकिस आहार व आहारक, तंजस - तंखस,
कार्मेण कार्मण |
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