Book Title: Karmagrantha Part 1
Author(s): Devendrasuri, Shreechand Surana, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Marudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
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कर्मविपाक
(५) जिस कर्म के उदय से कार्मणशरीर रूप में परिणत पुगलों का परस्पर सान्निध्य हो, वह कार्मण-संघातननाम है।
बन्धन नामकर्म के पांच भेद बतलाते समय यह कहा था कि इसके पन्द्रह भेद भी होते हैं। अतः अब उक्त पन्द्रह भेद कैगे बनते हैं और उनके क्या नाम हैं, यह बतलाते हैं।
ओरालयिउस्वाहारयाण सगतेयकम्मजुत्तणा। नव बन्धणामिइयरसहियाणं तिनि तेसिं च ॥३७॥ गाथार्थ-औदारिक, वैक्रिय और आहारक शरीरों का अपने नामवाले और तैजस व कार्मण शरीर के साथ सम्बन्ध जोड़ने से बन्धगनामकर्म के नौ भेद तथा तेजस-कार्मण को संयुक्त रूप में उनके साथ जोड़ने से और तीन भेद तथा तंजस व कार्मण को अपने नाम बाले व अन्य से मयोग करने पर तीन भेद होते हैं। इन भेदों को मिलाने से बंधन मामकर्म के पन्द्रह भेद हो जाते हैं। विशेषार्य-बन्धननामकर्म के मूल पाँच 'भेदों के नाम पूर्व में बतलाये जा चुके हैं लेकिन अपेक्षा दृष्टि से बनने वाले बन्धननामकर्म के पन्द्रह भेदों के नाम और उनके बनने की विधि इस गाथा में बतलाई गई कि औदारिक, वैक्रिय और आहारक इन तीनों शरीरों का अपनेअपने नाम वाले शरीर के पुद्गलों के साथ संयोग करने से तीन भंग बनते हैं । जैसे औदारिका-औदारिक आदि तथा उक्त औदारिक, वैक्रिय, आहारक का तंजस शरीर के साथ संयोग करने से और तीन भंग हो जाते हैं। जैसे-औदारिक-तंजस आदि। इसी प्रकार उक्त औदारिक आदि तीनों शरीरों में से प्रत्येक का कार्मण शरीर पुद्गलों के साथ संयोग करने से औदारिक कार्मण आदि तीन भंग बनते हैं ।