Book Title: Karmagrantha Part 1
Author(s): Devendrasuri, Shreechand Surana, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Marudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
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कर्मविपाक १२) जिस कर्म के उदय से पूर्वगृहीत वैक्रियशरीर पुद्गलों के साथ गृह्यमाण वैक्रियशरीर पुद्गलों का आपस में मेल हो, वह वैक्रियशरीर बन्धन नामकम है।
(३) जिस कर्म के उदय से पूर्वगृहीत आहारकशरीर पुद्गलों के साथ गृह्यमाण आहारकशरीर पुद्गलों का आपस में मेल हो, बह आहारकशरीरअन्धन नामकर्म है।
४) जिस कर्म के उदय से पूर्वगृहीत तैजसशरीर पुद्गलों के साथ गृह्यमाण तेजसशरीर पुद्गलों का आपस में मेल हो, वह तैजसशरीरबन्धन नामकर्म है।
(५) जिस कर्म के उदय से पूर्वगृहीत कार्मणशरीर पुद्गलों के साथ गृह्यमाण कार्मणशरीर पुद्गलों का आपस में मेल हो, वह कार्मणशरीर-बन्धन नामकर्म है।
अपेक्षाभेद से बन्धन नामकर्म के पन्द्रह भेद भी कहे हैं, उनके नाम और बनने के कारण का कथन गाथा ३७ में किया जा रहा है। अव संघातन नामकर्म के भेदों को बतलाते हैं।
जं संघायइ उरलाइ पुग्गले तणगणं व दंतालो।
तं संघाय बंधणमिव तणुनामेण पंचविहं ॥३६॥ गाथार्थ-दन्ताली द्वारा जमे तृणसमूह एकत्रित होता है, वैसे ही जो कर्म औदारिकादि शरीर पुद्गलों को एकत्रित करता है, उसे संघातन नामकर्म कहते हैं । इसके भी बन्धन नामकर्म की तरह औदारिक आदि पांच शरीरों के नाम की अपेक्षा से पाँच भेद होते हैं।
विशेषार्थ-संघातन का अर्थ है सामीप्य होना, सान्निध्य होना । पूर्वगृहीत और गृह्यमाण शरीर पद्गलों का परस्पर बन्धन तभी सम्भव