Book Title: Karmagrantha Part 1
Author(s): Devendrasuri, Shreechand Surana, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Marudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
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कर्मविपाक तक नारकादि गतियों में रहना पड़ता है। जब बाँधी हुई आयु भोग लेता है, तभी उस-उस शरीर से छुटकारा मिलता है।
आयुकर्म । 1 जीबको सुख दुःन मा नहीं है, परन्तु यत अवधि तक किसी एक मारीर में बनाये रहने का है। ___ नारकजीव नरकगति में अत्यन्त दुखी रहते हैं। वे वहां जीने की अपेक्षा मरना पसन्द करते हैं, किन्तु आयुकर्म के अस्तित्व से, भोगने योग्य आयुकर्म बने रहने से उनकी वह इच्छा पूरी नहीं होती। वैसे ही उन मनुष्य और देवों को जिन्हें कि विषय-भोगों के साधन प्राप्त हैं और उन्हें भोगने के लिए जीने की प्रबल इच्छा रहते हुए भी आयुकर्म के पूर्ण होते ही परलोक सिधारना पड़ता है। अर्थात् आयुकर्म के अस्तित्व से जीव अपने निश्चित समय प्रमाण अपनी गति एवं स्थूल शारीर का त्याग नहीं कर सकता है और क्षय होने पर मरता है, यानी समय पूरा होने पर उस स्थूल शरीर में नहीं रह सकता है । आयुकर्म के दो प्रकार हैं-- अपवर्तनीय. अनपवर्तनीय । ____ अपवर्तनीय आयु–बाह्य निमित्त से जो आयु कम हो जाती है, उसको अपवर्तनीय आयु या अपवर्त्य आयु कहते हैं। तात्पर्य यह है कि जल में डूबने, शस्त्रघात, विषपान आदि बाह्य कारणों से सौपचास आदि वर्षों के लिए बाँधी गई आयु को अन्तर्मुहुर्त में भोग लेना आयु का अपवर्तन है। इस आयु को जनसाधारण अकाल मृत्यु भी कहते हैं।
अनपवर्तनीय आयु–जो आयु किसी भी कारण से कम न हो। जितने काल तक के लिए जाँधी गई है, उतने काल तक भोगी ही जाय, वह आयु अनपवर्तनीय या अनपवर्त्य आयु कहलाती है।
उपपात जन्म लेने वाले, अर्थात् नारक और देव, चरम शरीरी (तद्भव मोक्षगामी, उस शरीर से मोक्ष जाने वाले), उत्तम पुरुष,