Book Title: Karmagrantha Part 1
Author(s): Devendrasuri, Shreechand Surana, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Marudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
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कर्म विपाक
(२) जिस कर्म के उदय से जीव को दो इन्द्रियाँ - शरीर और जीभ प्राप्त हों, उसे द्वीन्द्रिय जातिनामकर्म कहते हैं ।
(३) जिस कर्म के उदय से जीव को तीन इन्द्रियाँ - शरीर, जोभ और नाक प्राप्त हों, उसे श्रीन्द्रिय जातिनामकर्म कहते हैं ।
(४) जिस कर्म के उदय से जीव को चार इन्द्रियाँ - शरीर, जीभ, नाक और आँख प्राप्त हों, उसे चतुरिन्द्रिय जातिनामकर्म कहते हैं ।
(५) जिस कर्म के उदय से जीव के पाँचों इन्द्रियाँ - शरीर, जीभ, नाक, आँख और कान प्राप्त हों, उसे पंचेन्द्रिय जातिनामकर्म कहते हैं । शरीरनामकर्म के मेद व लक्षण
शरीर नामकर्म के पाँच भेद हैं- ( १ ) औदा रिकशरीर नामकर्म. (२) क्रियशरीर नामकर्म, (३) आहारकशरीर नामकर्म, (४) तैजसशरीर नामकर्म और (५) कार्मणशरीर नामकर्म । इनके लक्षण क्रमशः इस प्रकार हैं
(१) जिस कर्म के उदय से औदारिकशरीर प्राप्त हो, उसे औदारिक शरीर नामकर्म कहते हैं। उदार अर्थात् प्रधान अथवा स्थूल पुद्गलों से बना तथा हाड़ मांस, रक्त आदि जिसमें हों, वह औदारिकशरीर कहलाता है ।
तीर्थंकरों व गणधरों का शरीर प्रधान पुद्गलों से और सर्वसाधारण का शरीर स्थूल, असार पुद्गलों से बनता है । यह औदारिक शरीर सभी मनुष्यों, तिर्यत्रों का होता है, चाहे वे गर्भ जन्म वाले हों या समूच्छेम जन्म वाले हों ।
(२) जिस कर्म के उदय मे जीव को वैक्रियशरीर प्राप्त हो, वह वैक्रियशरीर नामकर्म कहलाता है। जिस शरीर से छोटे-बड़े, एकअनेक, विविध, विचित्र रूप बनाने की शक्ति प्राप्त हो, उमे वैक्रियशरीर कहते हैं ।