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कर्मविपाक
गति ये नामकर्म की १४ पिंडप्रकृतियां हैं और पगलात, उच्छ्वास, आतप, उद्योत, अगुरुलधु, तीर्थकर, निर्माण और उपधात ये आठ प्रत्येक प्रकृतियाँ हैं।
विशेषार्थ-पूर्वमाथा में नामकर्म के अपेक्षाभेद के कारण व्यालीस तिरानवे आदि भेद होने का संकेत किया गया है। संक्षेप या विस्तार से कहने को अपेक्षा ही इस संख्याभेद का कारण है। इन भेदों में कुछ प्रकृतियों अवान्तर भेद वाली हैं और कुछ अवान्तर भेद वाली नहीं हैं। जिन प्रकृतियों के अवान्तर भेद होते हैं उन्हें पिंडप्रकृति और जिन के अवान्तर भेद नहीं होते हैं उन्हें प्रत्येक प्रकृति कहते हैं। सर्वप्रथम बयालीस भेदों का कथन करने के लिए चौदह पिंडप्रकृतियों और आठ प्रत्येकप्रकृतियों के नाम इन दो गाथाओं में बतलाये हैं। इनके नाम क्रमशः इस प्रकार हैं
पिडप्रकृतियाँ-(१) गति, (२) जाति, (३) शरीर, (४) अंगोपांग, (५) बंधन. (5) संघातन, (७) संहनन, (८) संस्थान, (९) वर्ण, (१०) गंध, (११) रस, (१२) स्पर्श, (१३) आनुपूर्वी और (१४) विहायोगति ।
प्रत्येकप्रकृतियाँ- (१) पराघात, (२) उच्छ्वास, (३) आतप, (४) उद्योत, (५) अगरुलघु, (६) तीर्थकर, (७) निर्माण और (८) उपघात ।' । ये सब नामकर्म की प्रकृतियाँ हैं, इसलिए इनका उच्चारण करते समय प्रत्येक के साथ नामकर्म शब्द जोड़ लेना चाहिए। जैसे गतिनामकर्म, जातिनामकर्म, शरीरनामकर्म आदि । __ पिडप्रकृतियों की परिभाषायें इस प्रकार हैं१. (क) प्रज्ञापना जा २, पद २३, सूत्र २६३
(ख) समवायांग स्थान ४२