Book Title: Karmagrantha Part 1
Author(s): Devendrasuri, Shreechand Surana, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Marudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
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कर्मविपाक
गन्ध - जिस कर्म के उदय से शरीर में शुभ-अच्छी या अशुभ बुरो गन्ध हो, उसे गंध नामकर्म कहते हैं ।
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रस-जिस कर्म के उदय से शरीर में तिक्त, मधुर आदि शुभअशुभ रसों की उत्पत्ति हो उसे रसनामकर्म कहते हैं ।
स्पर्श – जिस कर्म के उदय से शरीर का स्पर्श कर्कश, मृदु, स्निग्ध, रूक्ष आदि रूप हो, उसे स्पर्शनामकर्म कहते हैं ।
आनुपूर्वी जिस कर्म के उदय से जीव विग्रहगति में अपने उत्पत्तिस्थान पर पहुँचता है, उसे आनुपूर्वीनामकर्म कहते हैं ।
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विहायोगति' - जिस कर्म के उदय से जीव की चाल हाथी, बैल आदि की चाल के समान शुभ अथवा ऊँट, गधे की चाल के समान अशुभ होती है, उसे विहायोगति कहते हैं ।
इन पिंड- प्रकृतियों के अवान्तर भेद-प्रभेदों की संख्या और नामों का संकेत आगे की गाथाओं में यथास्थान किया जा रहा है ।
नामकर्म की २८ प्रत्येक प्रकृतियों में से आठ के नाम गाथा में बताये हैं। जिनके लक्षण ग्रन्थ में आगे कहे जा रहे हैं ।
नामकर्म के अपेक्षा भेद से होने वाले बयालीस भेदों में यहां बाईस भेद कहे जा चुके हैं। शेष रहे बीस भेदों नाम आगे की दो गाथाओं में कहते हैं।
१. विहायोगति में विहाय विशेषण
पुनरुक्ति दोष निवारण हेतु दिया गया है। सिर्फ गति शब्द रखने पर नामकर्म की पहली प्रकृति का नाम भी गति होने से पुनरुक्ति दोष हो सकता था । शब्द को समझने के लिए विहायस् शब्द है, 1.-दि के अर्थ में ।
जीव को चाल अर्थ में गति न कि देवगति, मनुष्यगति