________________
कर्मविपाक
अनन्तानुबन्धी क्रोध - पर्वत फटने से आई दरार कभी नहीं जुड़ती, इसी प्रकार यह क्रोध परिश्रम और आय करने पर भी शान्त नहीं होता है ।
૬૪
संज्वलन मान -- बिना परिश्रम के नमाये जाने वाले बेंत के समान क्षणमात्र में अपने आग्रह को छोड़कर नमने वाला होता है ।
प्रत्याख्यानावरण मान - सूखे काष्ठ में तेल आदि की मालिश करने पर नरमाई आने की संभावना हो सकती है। इसी प्रकार यह महान कुछ परिश्रम और उपायों से दूर होने वाला होता है ।
अप्रत्याख्यानावरण मान-जैसे हड्डी को नमाने के लिये कठिन परिश्रम के सिवाय भी है अि
परिश्रम और उपाय से दूर होता है ।
अनन्तानुबन्धी मान जैसे कठिन परिश्रम से भी पत्थर के खम्भ को नमाना असम्भव है, वैसे ही यह मान भी दूर नहीं होता है ।
संज्वलन माया - बॉस के खिलके में रहने वाला टेढ़ापन बिना श्रम के सीधा हो जाता है, उसी प्रकार यह मायाभाव सरलता से दूर हो जाता है ।
प्रत्याख्यानावरण माया - चलते हुए मुतने वाले बैल को सुत्ररेखा की वक्रता के समान कुटिल परिणाम वाली होती है। यह कुटिल स्वभाव कठिनाई से दूर होता है ।
अप्रत्याख्यानावरण माया भेड़ के सींगों में रहने वाली वक्रता कठिन परिश्रम व अनेक उपाय द्वारा दूर होती है। इसी प्रकार के परिणाम वाली माया को अप्रत्याख्यानावरणी माया कहते हैं । यह मायापरिणाम अति परिश्रम व उपाय से सरल होते हैं।
अनन्तानुबन्धी माया - बांस की जड़ में रहने वाली वक्रता - टेढ़ेपन
-