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प्रथम क्रमंग्रन्थ
(श्रावकपन का घात करे, अर्थात जिसके उदय से देशविरति आंशिक त्यागरूप अल्पप्रत्याख्यान न हो सके, उमे अप्रत्याख्यानावरण कहते हैं । इस कषाय के प्रभाव में श्रावकधर्म की प्राप्ति नहीं होती है।'
प्रत्याख्यानावरण-जिस कषाय के प्रभाव से आत्मा को सर्वविरति चारित्र प्राप्त करने में बाधा हो, अर्थात् श्रमण (साधु) धर्म की प्राप्ति न हो, उसे प्रत्याख्यानावरण कहते हैं। इस कषाय के उदय होने पर एकदेशत्यागरूप श्रावकाचार के पालन करने में तो बाधा नहीं आती है, किन्तु सर्वत्यागरूप-साधर्म का पालन नहीं हो पाता है। ___ संज्वलन- जिस कषाय के उदय से आत्मा को यथाख्यात-चारित्र की प्राप्ति न हो, अर्थात् जो कषाय, परिषह तथा उपसर्गों के द्वारा श्रमणधर्म के पालन करने को प्रभावित करे, असर डाले, उसे संज्वलन कहते हैं । यह कषाय सर्वविरति चारित्र को निर्दोष रूप मे पालन करने में बाधा डालती है।
उक्त अनन्तानुबन्धी आदि चार प्रकारों के साथ क्रोध, मान, माया और लोभ-इन चार मूल भेदों को जोड़ने से कषायमोहनीय के सोलह भेद निम्न प्रकार मे हो जाते हैं
अनन्ताभुबन्धी-क्रोध, मान, माया, लोभ ।। अप्रत्याख्यानावरण-क्रोध, मान, माया, लोभ । प्रत्याख्यानावरण-क्रोध, मान, माया, लोभ ।
१. अप्रत्याख्यानकषायोदयदि तिनं भवति । –तरवार्थसत्र १०माध्य २. प्रत्याख्यानावरणकषामोदयाद्विरताविरतिभंवत्युत्तम चरित्र लाभस्तु न भवति ।
-तत्त्वार्थ सूत्र १० भाव्य ३. संज्वलनकषायोदयादाथाग्न्याश्चरित्रलाभो न भवति ।
-तत्वार्थसूत्र ८।१० माष्य