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कर्मविपाक
मतिज्ञान के अवग्रह आदि चार भेदों के नाम और उनके अट्ठाईस उत्तरभेदों में से व्यंजनावग्रह के चार भंद बतलाने के बाद अब शेष रहे चौबीस भेदों के नाम तथा श्रुतज्ञान के भेदों की संख्या बतलाते हैं
अत्युग्गह ईहावायधारणा करणमाणसेहि छहा ।
अयं अस्वीसनेयं वसा सहा व सुयं ॥५॥ गाथार्थ-अर्थावग्रह, ईहा, अवाय और धारणा ये प्रत्येक करण अर्थात् पाँच इन्द्रियों और मन मे होते हैं, इसलिए प्रत्येक के छह-छह भेद होने से चौबीस भेद हो जाते हैं और पहले बताये गये व्यंजनावग्रह के चारों भेदों को मिलाने में मतिज्ञान के अट्ठाईस भेद होते हैं । श्रुज्ञान के चौदह अथवा बीस भेद होते हैं। विशेषार्थ - मतिज्ञान के अट्ठाईस भेदों में व्यंजनावग्रह के चार भद पूर्व की गाथा में कहे गये हैं। बाकी रहे चौबीस भेदों को बतलाने से पहले गाथा में बताये गये अर्थावग्रह, ईहा, अवाय और धारणा के लक्षण कहते हैं।
अर्थावग्रह-पदार्थ के अव्यक्त ज्ञान को अर्थावग्रह कहते हैं। जैसे'यह कुछ है। अर्थावग्रह में भी पदार्थ के वर्ण, गन्ध आदि का ज्ञान नहीं होता है। किन्तु व्यंजनावग्रह की अपेक्षा अर्थावग्रहज्ञान में कुछ विशेषता होती है । अर्थावग्रह का काल एक समय प्रमाण है।
ईहा-अवग्रह के द्वारा जाने हुए पदार्थ के विषय में धर्म-विषयक विचारणा को ईहा कहते हैं, अर्थात् अवग्रह के द्वारा ग्रहण किये गये सामान्य विषय को विशेष रूप से निश्चय करने के लिए जो विचारणा होती है, उसे ईहा कहा जाता है। जैसे यह रस्सी का स्पर्श है या सर्प