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कर्मविपाक
अपेक्षा समझना चाहिए, रसोदय की अपेक्षा नहीं। औपशामक सम्यक्त्व में मिथ्यात्व का रसोदय और प्रदेशोदन-दोनों पकार का उदय नहीं होता है और प्रदेशोदय को ही उदयाभावी क्षय कहते हैं । जिसके उदय से आत्मा पर कुछ असर नहीं होता, वह प्रदेशोदय तथा जिसका उदय आत्मा पर प्रभाव डालता है, वह रसोदय है। . वेदकसम्यक्त्व - शायोपमिकसम्यक्त्व में विद्यमान जीव जब सम्यक्त्वमोहनीय के अंतिम पुद्गल के रस का अनुभव करता है, उस समय के उसके परिणाम को बेदकराम्यक्त्व कहते हैं। वेदकसम्यक्त्व के बाद जीव को क्षायिक सम्यक्त्व ही प्राप्त होता है ।
सास्वादनसम्यक्त्व-उपशमसम्यक्त्व में च्युत होकर मिथ्यात्व के अभिमुख हुआ जीव जब तक मिथ्यात्व को प्राप्त नहीं करता, तब तक के उसके परिणामविशेष को सास्वादन सम्यक्त्व कहते हैं। सास्वादन को सासादन भी कहते हैं।
कारकसम्यक्त्व-जिनोत क्रियाओं-सामायिक, प्रतिक्रमण, गुरुवंदन आदि को करना कारकसम्यक्त्व है।
रोचकसम्यक्त्व-जिनोक्त क्रियाओं में रुचि रखने को रोचकसम्यक्त्व कहते हैं।
दीपकसम्यक्त्व-जिनोक्त क्रियाओं से होने वाले लाभों का समर्थन, प्रसार करना दीपकसम्यक्त्व है। इसी प्रकार सम्यक्त्व के अन्य भेदों के लक्षण समझ लेने चाहिए ।
सम्यक्त्वमोहनीय का कथन करके आगे की गाथा में दर्शनमोहनीय के शेष भेदों-मिश्रमोहनीय और मिथ्यात्वमोहनोय के स्वरूप को कहते हैं।