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보다
कर्मविपाक
को देखने की शक्ति में रुकावट डालता है । दर्शनावरणचतुष्क और पाँच निद्राओं को मिलाकर दर्शनावरण कर्म के नौ भेद होते हैं। दर्शनावरणचतुष्क के नाम और लक्षण आगे की गाथा में कहते हैं ।
चमविट्ठि अचल सेसिदिय ओहि केवलेहि च । दंसणमिह सामन्नं तस्सावरणं तयं चउहा ॥१०॥ गाथा - नेत्र तथा नेत्र के सिवाय अन्य चार इन्द्रियों व मन तथा अवधि व केवल इनसे दर्शन के चार भेद होते हैं । यहाँ वस्तु में विद्यमान सामान्यधर्म के ग्रहण को दर्शन कहा गया है । दर्शन के चार प्रकार कहे गये हैं, अतः उसके आवरण करने वाले कर्मों के भी चार भेद समझने चाहिए ।
दर्शनावरण कर्म का स्वरूप
विशेषार्थ - प्रत्येक पदार्थ में सामान्य व विशेष रूप दो धर्म रहते है, उनमें से सामान्यधर्म की अपेक्षा जो पदार्थों की सत्ता का प्रतिभास होता है, उसे दर्शन कहते हैं और दर्शन को आवरण करने वाले कर्म को दर्शनावरण कहते हैं ।
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दर्शन के चार भेद हैं-चक्षुदर्शन, अचक्षदर्शन अवधिदर्शन और केवलदर्शन | दर्शन के इन चार भेदों का आवरण करने से दर्शनावरण के भी उस नाम वाले निम्नलिखित चार भेद हो जाते हैं
चक्षुदर्शनावरण, अचक्षुदर्शनावरण, अवधिदर्शनावरण, केवलदर्शनावरण | इनके लक्षण क्रमशः इस प्रकार हैं
चक्षुदर्शनावरण- चक्षु के द्वारा जो वस्तु के सामान्यधर्म का ग्रहण होता है, उसे चक्षु दर्शन कहते हैं और चक्षु के द्वारा होने वाले उस सामान्य-धर्म के ग्रहण को रोकने वाले कर्म को चक्षुदर्शनावरण कहते हैं ।