Book Title: Karmagrantha Part 1
Author(s): Devendrasuri, Shreechand Surana, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Marudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
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प्रथम
गाथा - कर्मशास्त्र में ज्ञानावरण, दर्शनावरण, वेदनीय, मोहनीय, आयु, नाम, गोत्र और अन्तराय ये कर्म की मूलप्रकृतियों के आठ नाम हैं और इनके क्रमश: पाँच, नौ, दो, अट्ठाईस, चार, एकसौ तीन, दो और पांच भेद हैं ।
विशेषार्थ- जीव द्वारा ग्रहण की गई कर्मपुद्गलराशि में अध्यव सायशक्ति की विविधता के अनुसार अनेक स्वभावों का निर्माण होता है । यद्यपि ये स्वभाव अदृश्य हैं। फिर भी उनके परिणमन की अनुभूति एवं ज्ञान उनके कार्यों के प्रभाव को देखकर करते हैं । एक या अनेक जीवों पर होने वाले कर्म के असंख्य प्रभाव अनुभव में आते हैं और इन प्रभावों के उत्पादक स्वभाव भी असंख्यात हैं । ऐसा होने पर भी संक्षेप में वर्गीकरण करके उन सभी को आठ भागों में विभाजित कर दिया है, जिनके नाम क्रमशः नीचे दिये जा रहे हैं
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(१) ज्ञानावरण, (२) दर्शनावरण, (३) वेदनीय, (४) मोहनीय, (५) आयु, (६) नाम ( ७ ) गोत्र और (८) अन्तराय । इन नामों
१. ( क ) नाणसावर णिज्जं दंसणावरण न्हा | पणिज्जं वहा मोह आवकम्मं तदेव य ॥ नामकम्मं च गोवं च अन्तरायं तदेव य । एवभयाई कम्माई अब उ समास t
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- उत्तराध्ययन ३३।२-३ (च) कम्म पगडीओ पण्णत्ताओ, तं जहा --गाणावरणिज्जं, दसणावणिज्जं वेणिज्जं मोहणिज्जं अवयं, नाम, गोयं, अन्तरादयं । - प्रज्ञापना पद २१.३०१, ३० २२८
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(ग) अद्यो ज्ञानदर्शन चरण वेदनीय मोहनी मानमिगोत्रान्तरायाः ।
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-- तत्त्वार्थसूत्र, अ०८०५