Book Title: Karmagrantha Part 1
Author(s): Devendrasuri, Shreechand Surana, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Marudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
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कर्मविपाक
बन्धहेतुओं के रूप में प्रसिद्ध हैं। उनकी संक्षिप्त व्याख्या नीचे लिखे अनुसार समझनी चाहिए ।
मिम्यात्व - इसका दूसरा नाम मिथ्यादर्शन है। यह सम्यग्दर्शन के उल्टे अर्थवाला होता है, अर्थात् यथार्थरूप से पदार्थों के श्रद्धान, निश्चय करने की रुचि सम्यग्दर्शन है एवं पदार्थों के अ यथार्थ श्रद्धान को मिथ्यादर्शन कहते हैं ।
यह अ यथार्थ श्रद्धान दो प्रकार से होता है - ( १ ) वस्तुविषयक यथार्थ श्रद्धान का अभाव और (२) वस्तु का अ यथार्थ श्रद्धान | पहले और दूसरे प्रकार में फर्क इतना है कि पहला बिलकुल मूतदशा में भी हो सकता है, जबकि दूसरा विचारदशा में ही होता है। विचार-शक्ति का विकास होने पर भी जब दुराग्रह के कारण किसी एक ही दृष्टि को पकड़ लिया जाता है, तत्र विचारशा के रहने पर अ-तत्त्व में पक्षपात होने से वह दृष्टि मिथ्यादर्शन कहलाती है । लेकिन जब विचारदशा जाग्रत नहीं हुई हो, तब अनादिकालीन आवरण से सिर्फ मूढ़ता होती है । उस समय तत्व का श्रद्धान नहीं होता और वैसे ही अतत्त्व पंच बसवदारा पण्णला, तं जहा मिच्छत्तं अविरई पमाए कसाया जोगा 1
१. ( क )
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(ख) मिथ्यादर्शनाविरतिप्रमादकषायोग बंधहेतवः ।
- स्थानांग ५/२/४१८
– तत्वार्थसूत्र, अ०म० सूत्र १
२. (क) तह्रियाणं तु भावाणं सम्भावे उवएसगं । भावेणं सद्दहन्तस्त्र सम्मत्त तं वियायि ॥
(ख) तत्त्वार्थे श्रद्धानं सम्यग्दर्शनम् ।
- उत्तरा० अ० २८, गा० १५
- तत्त्वार्थ सूत्र अ० १ ० २