Book Title: Karmagrantha Part 1
Author(s): Devendrasuri, Shreechand Surana, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Marudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
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मिथ्यात्व, सास्वादन, मित्र (सम्यम्-मिथ्याष्टि), अविरत सम्यग्दृष्टि, देशविरत, अमत्तसंयत, अप्रमत्तसंवत, निवृत्ति (अपूर्व करण), अनिवृत्तबादर संपराय, सूक्ष्म संपराय, उपशान्त कषाय-छमस्थ, क्षीणकषायवीतराग-छदमस्थ, सयोगि-
केसी, अयोगि-केवली । प्रत्येक के साथ गुणस्थान शब्द जोड़ने से उसका पूरा नाम हो जाता है। जैसे—मिथ्यात्व गुणस्थान, सास्वादन गुणस्थान आदि । ___ ये गुणस्पान जीव के ज्ञान, दर्शन, चारित्र आदि गुणों की शुद्धि और अशुद्धि नो तरतमभाव से होते हैं । इनमें मिथ्यात्व गुणस्थान अशुद्धतम और अयोगिकेवली गुणस्यान शुद्धतम दशा है। संसारी जीव अशुद्धि से शुद्धि की ओर बहने हुए जैसे-जैसे कर्मों का क्षय करता जाता है..वैसे-वैसे शुद्धि भी बढ़ती जाती है और शुद्धि के बढ़ने से कर्मों का क्षय अधिक और कर्मों का बन्ध कम होता जाता है। बन्ध कम और क्षय अधिक होने से एक ऐसा समय आ जाता है, जव संसारी जीन' समस्त कर्मों का क्षय करके मुक्त अवस्था को प्राप्त कर जन्म-मरण-रूप संसार से सदा के लिए छूट जाता है।
इस प्रकार जन-कर्मशास्त्र में मार्गणाओं के द्वारा समस्त संसारी जीवों का वर्गीकरण किया गया है और गुणस्थानों के द्वारा क्रमिक शुद्धि का क्रम बतलाते हुए पूर्ण शुद्ध अवस्था का चित्रण है । कर्मक्षय करने के साधन
अब यह विचार करते हैं कि कर्म-आवृत जीव को अपने परत्मात्मभाव को प्रगट करने के लिए किन साधनों की अपेक्षा है।
जन-दर्शन में परम पुरुषार्थ-..मोक्ष पाने के तीन साधन अनलाये गये हैं(१) सम्यग्दर्शन, (२) मम्पज्ञान और (३) सम्यक्चारित्र । कहीं-कहीं ज्ञान और क्रिया दो को ही गाक्ष का साधन कहा गया है, तो ऐने स्थलों पर समझना चाहिए कि दर्शन को ज्ञानस्वरूप समझकर उससे भिन्न नहीं भिना है ।
उक्त सन्दर्भ में यह प्रश्न होता है कि वैदिक दर्शनों में कर्म, ज्ञान, योग और भक्ति इन चारों को मोक्ष का साधना माना है, फिर जैनदर्शन में तीन या दो ही साघ्रन क्यों कहे गये हैं ? इसका समाधान यह है कि जैनदर्शन में जिस राम्यचारित्र को सम्यक् क्रिया कहा है, उसमें कर्म और योग दोनों भागों का