Book Title: Karmagrantha Part 1
Author(s): Devendrasuri, Shreechand Surana, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Marudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
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उनके वर्ण्य विषय और नामकरण आदि में भी दोनों सम्प्रदाय समान स्तर पर हैं।
श्वेताम्बर संप्रदाय में आचार्य शिवशर्मसूरि, चूर्णिकार आचार्य श्री चन्द्रि महत्तर, श्री गर्गर्षि, नवांगीवृत्तिकार आचार्य श्री अभयदेवसूरि, श्री मुनि सूरि मल्लधारी श्री हेमचन्द्राचार्य श्री चक्रेश्वरमूरि, श्री धनेश्वराचार्य, खरतर, गच्छीय आचार्य श्री जिनवल्लभसूरि आचार्य मलयगिरि, श्री यशोदेवसूरि श्री परमानन्द सूरि, बृहद्गच्छीय श्री हरिभद्रसूरि, श्री रामदेव, तपागच्छीय आचार्य श्री देवेन्द्र सूरि श्री उदयप्रभ, श्री गुणरत्न सूरि श्री मुनिशेखर आगमिक श्री जयतिलक सूरि न्यायविशारद न्यायाचार्य महामहोपाध्याय श्री यशविजयजी आदि अनेक मौलिक एवं व्याख्यात्मक कर्मवाद-विषयक साहित्य के प्रणेता और व्याख्याता निष्णात आचार्य व स्थविर हो गये हैं ।
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महान् आचार्य श्री सिद्धर्षि की उपभितिभवप्रपंच कथा मल्लधारी हेमचन्द्र सूरि की भावना मन्त्री यशपाल का मोहराज पराजय नाटक महामहोपाध्याय यशोविजयजी की वैराग्य कल्पलता आदि जनदर्शन के कर्मसिद्धान्त को अति सुक्ष्मता से प्रस्तुत करनेवाली कृतियां भारतीय साहित्य में अद्वितीय स्थान शोभित कर रही है, जो जैनदर्शन के कर्मसिद्धान्त के लिए गौरवणीय है। इसी प्रकार दिगम्बर सम्प्रदाय में भी श्री पुष्पदन्ताचार्य श्री भूतबलि आचार्य श्री गुणधराचार्य श्री यतिवृषभाचार्य श्री वीरसेनाचार्य श्री नेमिचन्द्र सिद्धान्तचक्रवर्ती आदि कर्मवात्र विषयक साहित्य के प्रमुख व्याख्याना पारंगत आचार्य और स्थविर हुए हैं ।
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दोनों सम्प्रदायों के विद्वान् ग्रन्थकारों ने कर्मवाद - विषयक साहित्य को प्राकृत, मागधी, संस्कृत एवं लोक भाषा में अंकित करने का एक जैसा प्रयत्न किया है। श्वेताम्बर आचार्यों ने कर्मप्रकृति, पंचसंग्रह प्राचीन अर्वाचीन फर्मग्रन्थ और उनके ऊपर चूणि, भाष्य, टीका, अवचूर्णि टिप्पण, टब्बा आदि रूप विशिष्ट कम साहित्य का सृजन किया है, जबकि दिगम्बर आचार्यों ने महाक्रमं प्रकृति प्राभृत, कषाय प्राभृत, गोम्मटसार, लब्धिसार, क्षपणासार, पंचसंग्रह आदि वशास्त्र और उस पर मागथी, संस्कृत आदि भाषाओं में व्याख्यात्मक विशाल
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