Book Title: Karmagrantha Part 1
Author(s): Devendrasuri, Shreechand Surana, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Marudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
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कुछ मतभेद न होने पर भी कुछ पारिभाषिक शब्दों में, उनकी व्याख्याओं में और कहीं-कहीं तात्पर्य में थोड़ा-बहुत भेद हो गया जिसकी परम्परा आज भी पूर्ववत् चल रही है । भेदबिन्दुओं को यथास्थान आगे प्रस्तुत करेंगे ।
(२) संकलना- भगवान महावीर के समय से अब तक कर्मशास्त्र की जो उत्तरोतर संकलना होती आई है, उसके स्थूल दृष्टि से तीन विभाग बतलाये जा सकते हैं - (क) पूर्वात्मक कर्मशास्त्र, (स) पूर्व से उद्धृन (आकर रूप कार्मशाल्य), और (ग) प्राकरणिक कर्मशास्त्र ।
(क) पूर्वात्मक कर्मशास्त्र --- यह भाग सबसे बड़ा और सबसे पहला है, पपीक इसवः अधिस्व सब ना जाता है, जब तक कि पूर्व विद्या विच्छिन्न नहीं हुई थी। भगवान् महावीर के बाद करीब नौ सौ या एक हजार वर्ष तक ऋमिक ह्रास रूप से पूर्व विद्या वर्तमान रही । 'चौदह में से आठवा पूर्व जिसका नाम कर्मप्रवाद है, मुख्यतया कर्मविषयक ही था, परन्तु इसके अतिरिक्त दूसरे पूर्व 'अग्रावणीय' में भी कमतत्त्व के विवार का एक कर्म-प्राभूत नामक भाग था। इस समय श्वेताम्बर या दिगम्बर साहित्य में पूर्वात्मक कर्म. शास्त्र का मूल अंश वर्तमान नहीं है ।
(ख) पूर्व से उद्धत (आकर रूप) कर्मशास्त्र -यह विभाग पहले विभाग से बहुत छोटा है, तथापि वर्तमान अभ्यासियों के लिए इतना बड़ा है कि उसे आकर कर्मशास्त्र कहना पड़ता है। यह भाग साक्षात् पूर्व से उद्धत है, ऐमा उल्लेख श्वेताम्बर-दिगम्बर--दोनों के ग्रन्थों में पाया जाता है । पूर्व से उद्धृत किये गये कर्मशास्त्र का अंश दोनों सम्प्रदायों में अभी वर्तमान है। उधार के समय सम्प्रदाय-भेद रूढ़ हो जाने से उद्धृत अंश दोनों मम्प्रदायों में कुछ भिन्न-भिन्न नाम से प्रसिद्ध है। श्वेताम्बर सम्प्रदाय में-(१) कर्मप्रकृति, (२) शतक, (३) पंचसंग्रह और (४) सप्ततिका-ये चार ग्रन्थ और दिगम्बर सम्प्रदाय में-(१) महाकम-प्रकृतिप्राभूत तथा (२) कषाय प्राभूत-ये दो ग्रन्थ पूर्वोद त माने जाते हैं।
(ग) प्राकरणिक कर्मशास्त्र-यह विभाग तीसरी संकलना का फल है । इसमें कर्मविषयक छोटे-बड़े अनेक प्रकरण ग्रन्थ सम्मिलित हैं। इन्हीं प्रकरण