Book Title: Karmagrantha Part 1
Author(s): Devendrasuri, Shreechand Surana, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Marudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
View full book text
________________
हो गया और इसमें दिन-प्रति-दिन नये-नये प्रश्नों और उनके उत्तरों के द्वारा अधिकाधिक विकास भी होता रहा ।
ये निवर्तकवादी विभिन्न पक्ष अपने-अपने सुभीते के अनुसार पृथक्-पृथक् विचार करते रहे, परन्तु जब तक इन सबका सम्मिलित ध्येय प्रवर्तकधर्मवाद का खण्डन रहा, तब तक उनमें विचार-विनिमय भी होता रहा और एकमाक्यता भी रही। यही कारण है कि न्याय-वैशेषिक, सांस्य योग, जैन और बौद्धदर्शन में कर्म-विषयक साहित्य में परिभाषा, भाव, वर्गीकरण आदि का शब्दाः और अर्थशः साम्य बहुत कुछ देखने में आता है। जबकि उक्त दर्शनों का विद्यमान साहित्य उस समय की अधिकांश पैदाइश है, जिस समय कि उक्त दर्शनों का परस्पर सद्भाव बहुत कुछ घट गया था । ____मोक्षवादियों के सामने एक समस्या पहले से यह थी कि एक तो युराने बद्ध कर्म भी अनन्त हैं, दूसरे उनका क्रमशः फल भोगने के समय प्रत्येक क्षण में नयेनये कर्म बंधते हैं, फिर इन सब कर्मों का सर्वथा उच्छेद कैसे सम्भव है ? इस समस्या का समाधान भी मोक्षकादियों ने बड़ी खूबी से किया था । आज हम उक्त निवृत्तिवादी दर्शनों के साहित्य में उस समाधान का वर्णन संक्षेप या विस्तार में एक-सा पाते हैं। ___ यह वस्तुस्थिति इतना सूचित करने के लिए पर्याप्त है कि कभी निवतकवादियों के भिन्न-भिन्न पक्षों में खूब विचार-विनियम होता था। यह सब कुछ होते हुए भी धीरे-धीरे ऐसा समय आ गया था, जबकि ये निवसंकवादी पक्ष सापस' में पहले जैसे निकट न रहे । फिर भी हर एक पक्ष कर्मतत्व के विषय में ऊहापोह तो करता ही रहा । इस बीच ऐसा भी हुआ कि किसी निवतंकवादी पक्ष में एक सासा कर्मचिन्तक वर्ग ही स्थिर हो गया, जो मोक्ष सम्बन्धी प्रश्नों की अपेक्षा कर्म के विषय में ही गह्रा विचार करता था और प्रधानतया उसी का अध्ययन-अध्यायन करता श्रा, जैसा कि श्रन्य-अन्य विषय के चिन्तक वर्ग अपने-अपने विषय में किया करते थे और आज भी करते हैं।
कर्म के बन्धक कारणों और इसके उच्छेदक उपायों के बारे में सभी मोक्षबादी गौण-मुख्यभाव से एकमत हैं ही पर वामतत्व में स्वरूप के बारे में ऊपर निर्दिष्ट चिन्तक वर्ग के मन्तव्य में अन्तर है । परमाणुवादी मोक्षमार्गी