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भूमिका
३१ दिया है । उसने आदि पुराण का उल्लेख किया है। ( १:५:८८ ) आश्चर्य है, श्रीवर ने नीलमत पुराण तथा उसके विषय के सम्बन्ध में कुछ नही लिखा है। यद्यपि कल्हण तथा जोनराज दोनों ने नीलमत पुराण तथा तत्सम्बन्धी गाथाओं का उल्लेख किया है। नील मत पुराण के हराशज एवं सतीसर प्रकरण का उल्लेख किया है। परन्तु दोनो प्रकरण कल्हण की राजतरंगिणी में भी वर्णित है ।
शिक्षक : श्रीवर को जैनुल आबदीन ने पुत्रवत् पाला था । श्रीवर का आदर, उसका पुत्र हैदरशाह करता था। हैदरशाह ने हसन शाह का शिक्षक श्रीवर को नियुक्त किया था। श्रीवर स्वयं लिखता है-'राजा ने आदर कर, मुझको उस (राजकुमार) हसनको प्रदान किया और मैं प्रतिदिन पुस्तक लेकर बृहत् कथा का आख्यान सुनाता था।' (२:१५७) श्रीवर तीन सुलतानो का प्रिय पात्र रहा है। तीनों ही सुल्तान उसे स्नेह एवं आदर से देखते थे । उनका मनोरंजन दर्शन, साहित्य, इतिहास के अतिरिक्त, अपने गीत एवं पदों से करता था।
व्याख्याता:
श्रीवर स्वयं अपने लिये व्याख्याता शब्द का प्रयोग करता है। ( १:७:१३२-१३३ ) श्रीवर सुल्तानों को दशन शास्त्र पढाता था। दर्शन एवं शास्त्रों की व्याख्या करता था। संगीत शास्त्र सम्बन्धी विद्वानों से शास्त्रार्थ करता था । दर्शनों आदि की व्याख्या से दुसह स्थलों को बोधगम्य बनाता था। श्रीवर आजकल व्यासों के समान पेशेवर, कथा वाचक अथवा व्याख्याता नही था। उसका स्तर बहुत ऊँचा था। जन्म से ही राजसभा मे रहने के कारण, पठित तथा बहुश्रुत था। विचारणीय विषयों पर उसके मत का महत्त्व होता था। उसके मतों का मूल्य था।
श्रीवर लिखता है-'मोक्षोपाय के लिये प्रसिद्ध वाल्मीकि मुनि कृत वासिष्ठ ब्रह्म दर्शन राजा ने मेरे मुख से सुना । (१:५:८०) शान्तरस पूर्ण मेरी व्याख्या सुनकर, राजा स्वप्न में भी, उसी प्रकार उसका स्मरण किया, जिस प्रकार कामुक कान्ता के हाव-भाव क्रियाओं का।' (१:५:८१) राजा मेरी व्याख्या सुनने से स्मृत एवं अपने अवस्था के सूचक, इस प्रकार बहुत से श्लोकों को पढा । (१:७.१३६)
भाषा:
हिन्दू राज्यकाल में काश्मीर की राजभाषा संस्कृत थी। स्त्रियाँ सुसंस्कृत काव्यमय भाषा बोलती थीं। महिलायें कविता करती थीं। भरत नाटय शास्त्र के आधार पर मनोरंजन एवं नाटकों का आयोजन होता था। शास्त्रीय संगीत होता था । संस्कृत काश्मीरी भाषा की आत्मा थी।
मुसलिम काल में फारसी प्रचार के साथ काश्मीरी भाषा मे फारसी तथा अरबी शब्दो का बाहुल्य हो गया। सिकन्दर बुत शिकन के पश्चात, काश्मीर की पुरानी धारा को वेग से एक ओर मोड़कर, उसे मुसलिम भाषा में प्रवारित करने का कठोर प्रयास किया गया। परन्तु जनता धर्म के समान तुरन्त भाषा बदलने में असमर्थ थी।
बोलचाल तथा पठन-पाठन की भाषा संस्कृत थी। श्रीवर ने जैनुल आबदीन, हैदरशाह तथा हसन शाह को संस्कृत पठित, विद्वान् रूप में चित्रित किया है। वे संस्कृत बोलते थे । संस्कृत साहित्य में रुचि लेते थे। शास्त्रीय संगीत को प्रोत्साहित करते थे। श्रीवर लिखता है-'राजा श्रीहर्ष हुआ, उस समय कविता के राज्य में जो लोग थे, वे सब कवि हुए थे, अधिक क्या कहे ? वे रसोइयाँ, स्त्री एवं बोझा ढोने वाले ही