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भूमिका
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भरत शास्त्र श्रीवर ने भरत शास्त्र का अध्ययन किया था। वह इस विषय का अधिकारी किंवा प्रमाण माना जाता था। सन्देह होने पर, शंका समाधान करता था। उल्लेख मिलता है-'अनभिज्ञता के कारण राजा ने उसका लक्षण मुझसे पूछा। शीघ्र ही मैंने भरत शास्त्र (नाट्यशास्त्र) आदि का उदाहरण दिया। उन पद, पाठ, स्वरों एवं ताल रागों से मनोहर, षडंग युक्त, उस गीत को सुनकर, उदार हृदय सुल्तान मुग्ध हो गया।' (३:२५७, २५८)
दर्शन ज्ञान:
सुल्तान जैनुल आबदीन को श्रीवर ने 'दर्शन नाथ' कहा है। सुल्तान जैनुल आवदीन को मोक्षोपम संहिता श्रीवर सुनाता था-'संसार दुःख की शान्ति के लिए अनेक रात्रियों में 'श्री मोक्षोपम' संहिता सुनाया।' (१:७:१३२) मैंने अपने कण्ठस्वर की भंगिमा से, उसका वृत्त परिवर्तन करके व्याख्या की, जिससे राजा क्षणभर के लिए. शोक रहित हो गया।' (१:७:१३३) जैनल आबदीन को श्रीवर योग वासिष्ठ पढ़कर सुनाता था । उसका भाष्य करता था। मोक्षोपाय के लिए प्रसिद्ध वाल्मीकि मुनि कृत वासिष्ठ ब्रह्म दर्शन को राजा ने मेरे मुख से सुना। शान्त रसपूर्ण मेरी व्याख्या सुनकर राजा स्वप्न में भी उसी प्रकार उसका स्मरण बिया जिस प्रकार कामुक कान्ता के हाव-भाव किया करता है। (१:५:८०-८१) भाष्य से सुल्तान इतना प्रभावित हुआ था कि उसने स्वयं योग वासिष्ठ के आधार पर 'शिकायत' नामक पुस्तक की रचना की थी।' इस प्रकार सोचते हुए राजा ने फारसी भाषा में सर्व लोगों के निन्दा रूप अर्थ को प्रकट करने वाला 'शिकायत' नामक काव्य लिखा।' (१:७:१४६) सुल्तान हैदर शाह को भी दर्शन श्रीवर समझाता था। वह लिखता है-'पुराण धर्म शास्त्रों को तथा मोक्षोपाय आदि संहिताओ को सुनते हुए, राजा (सुल्तान) रातों में जागता रहता था' (२:२१५) जैनुल आबदीन के पौत्र तथा हैदर शाह के पुत्र का श्रीवर प्रिय पात्र था। उसे गीत तथा शास्त्र सुनाता था। वह लिखता है-'हसनशाह ने षड् दर्शनों का स्वयं अध्ययन किया था।' (३:२२) दर्शनों में श्रीवर ने वैशेषिक एवं योग के सिद्धान्तों एवं सूत्रों का उल्लेख किया है। प्रतीत होता है। अन्य दर्शनों के समान उक्त दोनों दर्शनों का उसने विशेष अध्ययन किया था। (३:१) नास्तिक दर्शनकारों मे उसने केवल चार्वाक का उल्लेख मात्र किया है । चार्वाकों को परलोक से भय नही होता। श्रीवर उन्हें अच्छी दृष्टि से नहीं देखता। श्रीवर मुसलिम सुल्तानों का राजकवि था। मुसलिम नास्तिकों को घृणा की दृष्टि से देखते हैं । मुसलिम परलोक में विश्वास करते हैं। शैव भी लोक एवं परलोक का विचार करते है। परन्तु जिन्हे परलोक का भय नही, उन्हें किसी भी धर्म कर्म का भय नही होता।
श्रीवर ने क्रमशः काश्मीर के तीन सुल्तानों, जैनुल आबदीन, हैदरशाह एवं हसनशाह को दर्शन एवं शास्त्रों को व्याख्याता रूप मे सुनाया था। उन्हे प्रभावित किया था। उनमें कट्टरता के स्थान पर, सहिष्णुता एवं उदारता भाव अंकुरित किया था। सिकन्दर बुत शिकन द्वारा प्रचारित, क्रूर एवं कट्टर, उग्र सम्प्रदायवाद के स्थान पर, उदार मौलिक धर्म एवं निरपेक्ष नीति की ओर सुल्तानों का विचार प्रवाह मोड़ दिया था। इस प्रकार अपने राज्य की महान सेवा की थी।
योग : श्रीवर ने योग दर्शन का स्पष्ट बल्लेख न कर, उसके सिद्धान्तों का स्थान-स्थान पर परिचय दिया है। उसका योग दर्शन में प्रवेश था। उसने योगियों का जहाँ वर्णन किया है, वहाँ उसके शब्दों में श्रद्धा एवं भक्ति प्रगट