________________
भूमिका
२७.
काश्मीर संगीत की ओर आकर्षित होना स्वाभाविक था । सुल्तान को भेंट भेजा था - 'राणा कुम्भ ने नारी कुंजर नामक वस्त्र भेजकर उस देश के उत्तम स्त्रियों के हृदय के कौतूहल को दूर किया । (१:६:१३) ग्वालियर के राजा हूगर सिंह संगीत प्रेमी थे। उन्होंने अपने राज्य में संगीतज्ञों के प्रथम की जो परम्परा चलाई थी, वह अक्षुण भारतीय स्वाधीनता के पूर्व तक स्थित थी। तानसेन आदि प्रसिद्ध संगीतज्ञ ग्वालियर की देन है। काश्मीर सुल्तान के संगीत प्रेम एवं प्रथम से आकर्षित होकर उन्होंने भी सुल्तान को भेंट भेजा था - 'गोपालपुर (ग्वालियर) के राजा डूंगर सिंह ने गीत, ताल, कला, वाद्य, नाट्य लक्षणों युक्त संगीत शिरोमणि एव संगीत चूडामणि नामक गीत ग्रन्थ विनोद हेतु सुल्तान के लिए भेजा (१:६:१५) संगीत चूड़ामणि चालुक्य वंशीय महाराज जगदेकमल्ल (सन् १९३४ ११४३) संगीत के प्रकाण्ड विद्वान् थे । उनकी राजधानी कल्याण थी । संगीत चूडामणि बृहद् ग्रन्थ के रचनाकार थे ।
"
से
रबाब : tara वाद्य की जन्मभूमि काश्मीर है । जो लोग रबाब को इरानी अथवा मध्य पश्चिम एशिया का वाद्य मानते है । उनका भ्रम श्रीवर दूर करता है - ' रबाब वाद्य का रचना कर्त्ता बहलोल आदि गायको ने तत् तत् प्रकार से कनकवर्षी सुल्तान की कृपा से क्या नही प्राप्त किया ?' (२:५९) काश्मीर में आज भी रबाब वादन सर्वप्रिय है। काश्मीर के स्वाविया भारतवर्ष में प्रसिद्ध है।
ज्योतिष ज्ञान
प्राचीन शैली के पण्डित, षट्शास्त्र के साथ ही साथ ज्योतिष का अध्ययन करते थे । श्रीवर के वर्णन से प्रकट होता है कि उसने फलित एवं गणित दोनों का ज्ञान प्राप्त किया था 'सभी प्राणियों के लिए ३६ वर्ष भयकारी होता है। महाभारत में पाहुवंशियां के विनाश होने से प्रसिद्ध है " ( १:२८) यह पुनः लिखता है - 'राजा द्वारा पूछे जाने पर ज्योतिषियों ने पाशु वृष्टि से इस वर्ष दुर्भिक्ष होना कहा । ' ( १:२:१०) ग्रहों तथा नक्षत्रों के फल तथा उनके गति प्रभाव का वर्णन श्रीवर ने किया है। ज्योतिषी होने के कारण श्रीवर ज्योतिष में विश्वास करता था । योग, लग्न, मुहूर्त आदि की घटनाओ का कारण माना है । जैनुल आबदीन के पुत्र मुगल बादशाह शाहजहाँ के पुत्रों के समान परस्पर सङ्घर्ष रत हो गये थे। उसका भी कारण वह ज्योतिष को ही देता है— 'निश्चय ही जातक योग के कारण पुत्रों से सुल्तान दुःखी हुआ, क्योकि उसके सुत स्थान मे पाप दृष्ट भौम था । ( १ : १९ : २६४ ) ( सूर्य की संक्रान्ति क्रूर दिनों मे हुई थी। उससे प्रजा के भविष्य में क्रूर फल की उत्पत्ति तथा विनाश का भय उत्पन्न हो गया था । ( १:७ : १६ ) आकाश में द्वितीया के चन्द्रमा का उत्तान होकर दिखाई पड़ना राजा के परिवर्तन योतक सदृश था (१:७. १८) । श्रीवर राजा तथा मन्त्रियो की गणना करता था। वह वही कर सकता था, जो प्रतिदिन कार्यो में गणना एवं ग्रहों की स्थिति का ज्ञाता होता था । वह लिखता है - 'मंगल वर्ष ( राजा मंगल) का वह मास, वर्णाचार का विपर्यास एवं पुर श्री के निर्वासन हो जाने पर निवास क्षयकारी हुआ।' (३:२९१) इस प्रकार वह राहु की उपमा देता है— 'राहु की छाया की तरह बढता आधिपत्य करने लगा । ( ३:४३८) ग्रहण की तरफ यहाँ संकेत किया गया है । ग्रहण जिसने ध्यानपूर्वक देखा है, वही इस श्लोक के अर्थ एवं भाव को समझ सकता है। राहु क्रूर किवा पाप ग्रह है । उसकी उपमा पुनः श्रीवर ने दी है— 'शस्त्राधिपत्य के अनुचिर निग्रह एवं अनुग्रहों के कारण, ग्रहों में राहु के समान, उन (मन्त्रियों) में वह क्रूर हो गया ।' क्रूर ग्रह का श्रीवर और उल्लेख करता है'क्रूर ग्रह के समान अलीशेर और हैदर उसके मुख, बाहू एवं कपाल पर प्रहार किये और उसे विवश कर दिये ।' (४:६००) ग्रहों के प्रभाव के विषय में धीवर लिखता है— कभी प्रसन्न होकर, सार्वजनिक सुख पैदा
के
ני