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जैन राजतरंगिणी
हसन ने भी दश तन्त्रियो की मोद वीणा बनायी । राजा के आदेश पर तुम्ब वीणा धारी मैंने भी, पारसी गीत की कौशल पूर्वक भाषा गीत सामग्री प्रदर्शित की' । ( २:२३५, २३६ ) श्रीवर के वीणा वादन की कुशलता इसी से प्रकट होती है कि पारसी तथा भाषागीत को वीणा पर कुशलता पूर्वक गाता था ।
संगीतज्ञ :
श्रीवर के कारण काश्मीर के सुल्तानों की ख्याति संगीत विद्यासंरक्षकों के रूप में हो गई थी । देश तथा विदेश से संगीतज्ञ मान, प्रतिष्ठा, आश्रय, अर्थ एवं संरक्षण हेतु काश्मीर में आने लगे थे ।
मीर मे गन्धवं विद्या का अर्थ शास्त्रीय संगीत से लिया जाता था (१:५:९) सर्वगुण सागर अब्दुल का शिष्य खुज्य राग, ताल आदि समन्वित, सरस गायक जैनुल आबदीन को प्रसन्न करता था । ( १ : ४ : ३१) हसन शाह के समय इसी प्रकार गीत काव्य कला मे प्रख्यात कदन विदेश से काश्मीर मे आया था । (३:२५४, २४५) वह प्रबन्ध गीत में दक्ष था । उसने 'सर्वलीला' नामक प्रबन्ध देशी भाषा में गाया था । (३:२५६) तत्कालीन काश्मीर मे श्रीवर के कारण शास्त्रीय संगीत को जो मान्यता मिली, उससे काश्मीरी संगीत विदेशी संगीत पद्धति के समक्ष उमडकर सामने आई । विदेशी संगीत ने चाहे काश्मीरी संगीत को प्रभावित किया हो, परन्तु उसका उन्मूलन नही कर सका । रक्षा के लिए शास्त्रार्थं वाद एवं स्वयं गाकर, भारतीय संगीत का मस्तक ऊँचा ख्याति उसके शास्त्रीय संगीत के कारण भारतवर्ष के गायक कदन ( गायक) से संगीतशास्त्र विषयक शास्त्रार्थ श्रीवर ने किया था । ( ३:५५९ ) श्रीवर के विजय से प्रसन्न होकर, हसन शाह ने कहा—'अहो काश्मीरी भी, तुम सर्वशास्त्र वेत्ता एवं चतुर हो ।' यह कहकर, राजा ने श्रीवर को आलिङ्गन कर, उसे अपना गुरु घोषित किया । (३ : २६६) श्रीवर को प्रचुर सम्पत्ति दिया । ( ३:२६३)
राजाओं में फैल गई थी
।
श्रीवर भारतीय संगीत की
करता था । काश्मीर की
उसका पुत्र कुशल वीणा सम्पन्न प्रसन्न नवयुवक
(
इसका परिणाम यह हुआ कि काश्मीर के सुल्तानों ने स्वयं केवल प्रश्रय ही नही दिया स्वयं निपुण शास्त्रीय संगीत के गायक हो गये । जैनुल आबदीन स्वयं गीत गोविन्द गाता था । वादक था । उसके पौत्र ने विदेश से गायको को बुलाया था - ' प्रचुर राजश्री से नृपति गीतवेत्ता वर्ग को लाकर, संगीत रसिक हो गया । ३:२३० ) सुल्तान जैनुल आबदीन, उसके पुत्र सुल्तान हैदर तथा पौत्र हस्सन स्वयं संस्कृत, समझते थे । बोलते थे । संगीत शास्त्र का अध्ययन करते थे । संगीतिज्ञों के साथ गाते थे । रस मर्मज्ञ थे । कलाविद् थे । ( ३:२३७) श्रीवर सुल्तान हसन के गायन का वर्णन करता है - 'जिससे तरु समुल्लसित होते है, मृग बश मे हो जाते है, देवता गण यंत्र में उतरते है, जो कि मूर्ख, विद्वान्, बालक, वृद्ध के दुःख-सुख मे प्रीतिकर होता है, वह श्रीनाद नामक रस मेरे लिए प्रिय हो ।' उस समय सुल्तान ने मधुर कण्ठ से राग के एक अलाप से बहुत से राग वाले सूत्र एवं ऊँचे गीत गाकर, हम लोगों को चकित कर दिया । ( ३:२३८, २३९)
सुल्तान हसन के पिता सुल्तान हैदर के विषय में श्रीवर लिखता है - ' गीत गुणों का सागर अब्दुल कादिर का अन्तेवासी वीणावादक मुल्ला डोदक सुल्तान का गुरु था । इससे कूर्म वीणादि वाद्यों का गीतकौशल प्राप्तकर, जीवन पर्यन्त सुल्तान तन्त्री-वादन के बिना क्षणभर नहीं रह सकता था । व्यंजन धातुओं द्वारा तन्त्रीवाद्यविशेषज्ञ तथा वादन में प्रवीण सुल्तान स्वयं वीणावादकों को भी शिक्षा देता था ।' (२:५६-५८)
राणा कुम्भ स्वयंवीणा वादक एवं शास्त्रीय संगीत का प्रख्यात विद्वान् था । उसने 'संगीतराज' ग्रन्थ की रचना की थी । गीत गोविन्द षर 'रसिक प्रिया' विशद टीका लिखी थी । राणा कुम्भ का
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