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2 • जैन आगम : इतिहास एवं संस्कृति
स्थान जैन परम्परा में आगम- सिद्धान्त' का है। आगमों को श्रुत, सूत्र, ग्रन्थ, सिद्धान्त, शासन, आज्ञा, वचन, उपदेश, प्रज्ञापना अथवा प्रवचन भी कहा गया है।" भगवान महावीर के उपदेशों को सुनकर उनके गणधरों ने जो ग्रन्थ रचे हैं उन्हें श्रुत कहते हैं।' श्रुत का अर्थ है, सुना हुआ अर्थात् जो गुरु-मुख से सुना गया हो वह श्रुत है। भगवान महावीर के उपदेशों को उनके मुख से उनके गणधरों ने श्रवण किया और उनके गणधरों से उनके शिष्यों ने और उन शिष्यों से उनके प्रशिष्यों ने श्रवण किया। इस तरह श्रवण द्वारा प्रवर्तित होने के कारण ही उसे श्रुत कहा जाता है। श्रुत की यह परम्परा बहुत समय तक इसी तरह प्रवर्तित होती रही । सम्पूर्णश्रुत के अन्तिम उत्तराधिकारी भद्रबाहु थे। उनके समय में बारह वर्ष का भयंकर दुर्भिक्ष पड़ा और संघभेद का सूत्रपात हो गया । "
आगम संकलना
श्वेताम्बरीय मान्यता के अनुसार चन्द्रगुप्त मौर्य के समय बारह वर्ष का दुर्भिक्ष पड़ा। उसका अवसान हो जाने पर पाटलिपुत्र में एक साधु सम्मेलन हुआ और उसमें जिन-जिन श्रुतधरों को जो कुछ स्मृत था उसका संकलन किया गया। इसे पाटलिपुत्र वाचना कहते हैं । "
मगध में मौर्य साम्राज्य के पतन और शुंगवंशी पुष्यमित्र के उदय के पश्चात् जैन धर्म का वहां से स्थानान्तरण हो गया । " मगध से हटने के पश्चात् जैन धर्म का केन्द्र मथुरा बना । कुषाणवंशी राजाओं के समय वहां जैन धर्म का प्रभावशाली स्थान था। वीर निर्वाण" सम्वत् 827 और 840 के मध्य मथुरा से भी जैन संस्कृति का प्राधान्य उठ गया।'± इसी कारण तीसरी वाचना सुदूर वलभी में आयोजित हुई। देवर्द्धि की अध्यक्षता में वलभी परिषद सिद्धान्तों के लेखन के लिए हुई थी। 3
यह वाचना पाटलिपुत्र की वाचना से आठ सौ वर्ष पश्चात् हुई थी। उस समय भी बारह वर्ष का भयंकर दुर्भिक्ष पड़ा था जिससे बहुत सा श्रुत नष्ट तथा विच्छिन्न हो गया था। इस वाचना की सबसे बड़ी विशेषता यह थी कि पहले की वाचनाओं की तरह उसमें केवल वाचना ही नहीं हुई, अपितु इस वाचना द्वारा संकलित और व्यवस्थित सिद्धान्तों को पुस्तक रूप प्रदान कर के उन्हें स्थायित्व भी प्रदान किया गया और इस तरह एक हजार वर्ष से जो सिद्धान्त स्मृति के रूप में प्रवाहित होते आए थे, उन्हें मूर्त रूप मिल गया।
सम्भवत: इसी कारण से वलभी का नाम दिगम्बर सम्प्रदाय में भी स्मृत रहा क्योंकि हरिणेष के कथाकोष में वलभी में ही श्वेताम्बर सम्प्रदाय की उत्पत्ति बताई गयी है। सिद्धान्तों के पुस्तकारूढ़ हो जाने के पश्चात् फिर कोई वाचना नहीं हुई क्योंकि उसकी आवश्यकता ही नहीं रही। 14 वर्तमान श्वेताम्बर जैन आगम इसी