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296 • जैन आगम : इतिहास एवं संस्कृति भेड़िया, सांड, घोड़ा, हाथी, हिरण266 तथा शिशुमार थूथन वाला स्तनपायी की चर्चा कल्पसूत्र में प्राप्त होती है।
पक्षी
आचारांग सूत्र में उड़ने वाले जीवों के लिए सम्पातिम शब्द मिलता है।267 उत्तराध्ययन सूत्र में खेचर जीवों को (1) चर्मपक्षी, (2) रोमपक्षी, (3) समुदग पक्षी, तथा (4) वितत पक्षी के अन्तर्गत रखा गया है।2681
हंस, कौंच, गरुड़ तथा गीध,269 संडसी जैसी चोंच वाले ढंकू,270 बाज,271 बलाका,272 खंजन,273 चाप पक्षी,274 कबूतर,275 तोता,276 आदि की चर्चा उत्तराध्ययन सूत्र में प्राप्त होती है। बतख, तीतर, चकोर और बटेर,277 मुर्गा,278 कौआ,279 तथा भारुण्ड280 अन्य पक्षी हैं। पिंगला (फ्रेंकोलिन पाटिज),281 कठोर चोंच वाले पक्षी282 की चर्चा भी प्राप्त होती है। बगुला, कुर्सी, मछली खाने वाले पक्षी, बड़ी चिड़िया और तीतर मांसाहारी पक्षी के अन्तर्गत आते थे।283 बिहग, पोत284 राजहंस,285 कोयल,286 मोर, सारस और चक्रवाक287 जैसे पक्षी मौसम विशेष में नृत्य और गायन से मन मोहते थे।288
अन्य जीव जन्तु
जैन सूत्रों में अनेक जीव जन्तुओं का उल्लेख हुआ है। जीव जन्तु यों तो फसल को नुकसान पहुंचाते थे जैसे चूहे अनाज खा जाते थे किन्तु जहां कुछ हानिकारक थे वहीं अन्य लाभकारक भी थे। उदाहरण के लिए सांप चूहों को खा जाते थे, बिल्ली चूहे खाती थी, चिड़ियां छोटे जीवों को खा लेती थीं तो गिरगिट आदि अन्य कृमियों को खा जाते थे। मधुमक्खी आदि से शहद प्राप्त होता था। टिड्डी फसल खाती तो बाज सांप, टिड्डी आदि को पकड़ लेते थे। रेशम के कीड़ों से रेशम के वस्त्र बनते थे। सीप, शंख, कौड़ी भी जीवों से ही प्राप्त होती थीं। जिनके गहने बनाये जाते थे। शंख बजाने के काम आता था तो कौड़ी खेल के पांसे के रूप में। जीव जन्तु औषध निर्माण के काम भी आते थे। विशेष रूप से विषैले जन्तु।
घुन, दीमक,289 चींटी,290 डांस, मच्छर, मक्खी ,291 मधुमक्खी ,292 मकड़ी,293 कीट, पतंगा और बोक्कस,294 ऐसे ही छोटे जीव थे। __कृमि, सौमंगल, अलस, मातृवाहक, वासीमुख, सीप, शंख, शंखनक, पल्लीय, अणुल्लक, कौड़ी, जौंक, जलौक, चंदनियां, इन्द्रिय जीव थे।295
कुंथु, चींटी, खटमल, मकड़ी, दीमक, तृणहारक, काष्ठाहारक, घुन मालुक, पत्राहारक, कर्पासास्थि, भिंजक, तिन्दुक, वपुषभिंजक, शतावरी, कानखजूरी,