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आर्थिक दशा एवं अर्थव्यवस्था • 295
और संरक्षित अर्थराशि की चर्चा पुन: इसी ओर इंगित करती प्रतीत होती है।245 प्रतीत होता है कि सुदूर देशों से जलमार्ग से व्यापार होता था।46 यद्यपि समसामयिक बौद्ध तथा ब्राह्मण साक्ष्यों से ज्ञात होता है कि व्यापारी श्रेणियों में संगठित थे किन्तु जैन ग्रन्थों से ऐसी कोई सूचना प्राप्त नहीं होती।
पशु सम्पदा
भारत सदा से कृषि प्रधान देश रहा है। स्वाभाविक ही है कि कृषि कर्म की आवश्यकता को ध्यान में रखकर पशु-सम्पदा का भी संरक्षण किया गया हो। पशु न केवल कृषि कार्य के लिए प्रत्यक्ष सहायक थे जैसे बैल जुताई के लिए, कुत्ता रखवाली के लिए, गाय दूध और गोबर के लिए अपितु बहुउपयोगी थे। उनके चर्म से वस्त्र बनते, ढोलक और मषक बनतीं, उनसे दूध मिलता, खाद मिलती, मांस मिलता, उनकी अस्थियों से कंघी आदि बनती, उनके गोबर की खाद बनती, उनके बालों से धागे तथा ऊन बनती तथा अनेक रसायन बनते थे। पशु भारवाही का भी कार्य करते थे जैसे ऊंट और बैल आदि सवारी के कार्य आते थे। जैसे हाथी घोड़ा आदि।
जैनागमों में अनेक पालत तथा जंगली जानवरों के नाम प्राप्त होते हैं जो इस प्रकार हैं-गाय,247 बैल,248 बकरा,249 मेमना250 बहुउपयोगी घरेलू जानवर थे। ऊंट, गाय, भैंस, घोड़ा, गधा आर सुअर जैसे जानवर बहुतायत से पाले जाते थे।51 जिनसे अनेक काम लिये जाते थे। ऊंट और गधा सामान ढोते थे। घोड़ा सवारी के काम आता था। गाय और भैंस दूध देती थी। सूअर मैला खाते थे तथा उनके बालों से झाड़न बनाये जाते थे। गाय-भैंस के सींगों से कंघी तथा खिलौने बनाये जाते थे। इनका गोबर खाद के काम, मांस खाने के काम तथा चर्म वस्त्र व जूते बनाने के काम आते थे। जैन ग्रन्थों में अनेक पशुओं की चर्चा हुई है जैसे कुत्ता, नेवला,152 उद्र तथा पैस253 भैंस तथा जंगली सुअर,254 घोड़ा,255 हाथी,256 हिरण,257 बिल्ली तथा चूहे 58 आदि की।
स्थल चर जीवों की चर्चा करते हुए उत्तराध्ययन में एक खुर बाले घोड़े, दो खुर वाले बैल, गंडीपद हाथी तथा सनखपद सिंह आदि की चर्चा हुई है।259 वर्गीकरण की यह परिष्कृति प्रवृत्ति दर्शाती है कि आगमकाल में विश्लेषण तथा तार्किक क्रमबद्धता तथा नियोजन की प्रवृत्ति का पर्याप्त विकास हो गया था।
पशुओं की विशेषता बताते हुए उत्तराध्ययन सूत्र में अन्यत्र जातिमान अश्व कम्बोज देश के कंथक, घोड़े, हथिनियों, तीक्ष्णसींग तथा पुष्ट स्कन्ध बाले बैल, मृग, तीक्ष्ण दाढ़ के युवा दुष्पराजेय सिंह का उल्लेख हुआ है।260 गैंडा,261 सांड,262 सुअर,263 जल मार्जार तथा ऊद बिलाव264 के नाम भी प्राप्त होते हैं। आचारांग सूत्र265 में काले, नीले, पीले हिरण तथा चीते का उल्लेख हुआ है।