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294 • जैन आगम : इतिहास एवं संस्कृति
तथा अभ्रबालुक की भी चर्चा मिलती है।21 प्रवाल, पांड, भूरी मिट्टी और पनक अन्य खनिज थे।222 निश्चय ही यह खनिज सम्पदा अपने बहु उपयोगों के लिए ज्ञात थी और व्यापार को समृद्ध बनाने में योगदान दे रही थी। कोयले223 की खाने बहुतायत से थीं।
धातुएं
चांदी, सोना, कांसा, प्रसिद्ध धातुएं थीं।24 चांदी, सोना, जेवर बनाने के काम आता था जब कि कांसा बर्तन बनाने के काम आता था।25 ताम्बा, लोहा, रांगा, टिन और सीसा जैसी धातुएं आगम काल में सुविख्यात थीं।226
बहुमूल्य रत्न तथा मणियां
हीरा,227 मूंगा,228 लोहिताक्ष, पन्ना, भूज, मांचक, नीलम, बिल्लौर, स्फटिक, हंसगर्म, पुलाक, चन्द्रप्रभ, बैदूर्य, जलकान्त तथा सूर्यकान्त229 बहुमूल्य रत्नों में परिगणित होते थे जिनके अलंकरण स्वर्ण तथा हिरण्य से संयुक्त बनते थे। गोमेदक, रुचक, अंक-30 तथा मुक्ता31 अन्य बहुमूल्य रत्न तथा मोती थे। कल्पसूत्र में भी मूंगा, माणिक, लाल, शंख और कौड़ी का उल्लेख प्राप्त होता है।32 इन्द्रनील, सस्यक, मरकत, प्रवाल तथा अंकमणि की भी चर्चा मिलती है।33
मुद्रा विनिमय
मुद्रा विनिमय का प्रमुख साधन है। जैन सूत्रों में अनेक प्रकार की मुद्राओं एवं सिक्कों का उल्लेख होता है। आचारांग सूत्र में हिरण्य सुवर्ण का उल्लेख प्राप्त होता है।234 सुवर्ण का पृथक उल्लेख भी प्राप्त होता है।35 अन्य मुद्राओं में कार्षापण (काहावण),236 माष,37 अर्धमाष तथा रूपक-38 का उल्लेख प्राप्त होता है। उत्तराध्ययन सूत्र में सुवण्ण मासय स्वर्णमाषक शब्द प्राप्त होता है।39
चांदी के सिक्कों में दख्म240 तथा स्वर्ण में दीनार241 का प्रचलन था। ताम्बे के सिक्के में काकिणी प्रचलित था।242 छोटे सिक्कों का भी काफी प्रचलन था।243 काकिणी दक्षिणापथ में प्रचलित था। यह ताम्बे के कार्षापण का चौथा भाग होता था।
वणिक सम्भवत: महाजनी बैंक का कार्य भी करते थे तथा ब्याज व सूद पर रूपया उधार देते थे। इस अनुमान का आधार उत्तराध्ययन सूत्र में प्राप्त मूलपूंजी शब्द है।244 इसी प्रकार आचारांग सूत्र में उपभोग के बाद बचा धन, अर्जित धन