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292 • जैन आगम : इतिहास एवं संस्कृति
वस्त्र व्यवसाय
वस्त्र उद्योग तथा वस्त्र व्यवसाय आगम काल में अतिविकसित दशा में थे। फर के बने वस्त्र स्वर्ण से कसीदे किये, अलंकृत और विभिन्न जीवों की खालों के बने वस्त्र'74 सम्पन्न व्यक्तियों की शोभा द्विगुणित करते थे। राजसी वस्त्र बहुमूल्य नगों से अलंकृत होते थे। इन वस्त्रों की बनावट अनेक प्रकार की होती थी तथा उन पर हजारों नमूने कढाई किये जाते थे।।75 बहुमूल्य वस्त्र मुलायम तथा कसीदा किये हुए होते थे तथा इन पर पशु, पक्षी, यक्ष, किन्नर, पेड़, पौधे, काढ़े जाते थे।176
कुछ नगर वस्त्र निर्माण के लिए विशेष रूप से प्रसिद्ध थे तथा आशातीत वस्त्रों का भी उपयोग होता था।7
ऊनी, रेशमी, पटुवा, ताड़ के पत्तों से बने सूती वस्त्र तथा अर्कतूल के रेशे से बने वस्त्र अत्यन्त लोकप्रिय थे।।78 कर के उत्कृष्ट वस्त्र बकरी के बालों से बने बस्त्र, नीले सूत से बने वस्त्र, साधारण सूत के बने तांत पट्ट, मलय वस्त्र, कलकल, मलमल, तेजाब, रेशम, देशराग, अमिल, जग्गल, फालिम, प्रचलित वस्त्रों की अन्य किस्में थीं।।79 जूट के रेशों से रस्सी बुनी जाती थी।।80
धनिक विविध प्रकार के बहुमूल्य वस्त्र धारण करते थे जिनमें स्वर्णतार से विभूषित वस्त्र आईणग!82 अजिन, पशुओं की खाल से बने वस्त्र, सहिण सूक्ष्म बारीक वस्त्र, सहिणकल्लाण पारदर्शी वस्त्र, आय183 बकरे के बालों के बने वस्त्र काय84 नीली कपास के बने वस्त्र, खोमिय क्षौमिक-कपास के बने वस्त्र दुगुल्ल185 (दकुल), पौधे के तन्तुओं से बने वस्त्र, मलय, पतुन्न,186 पत्रौर्ण, वृक्ष की छाल से बने अंसुय (अंशुक), चीणांसुय चीनांशुक के देसराग रंगीन वस्त्र, अमिला87 स्वच्छ वसत्र गज्जफल188 पहनते समय कड़ कड़ शब्द करने वाला वस्त्र. फालिय स्फटिक के समान उज्ज्वल वसत्र, कोयवा89 रुएंदार कम्बल, पावार प्रावरण वस्त्रों का उल्लेख किया गया है।
अन्य वस्त्रों में उड़द 90 (उद्र), सिन्धु देश में उत्पन्न होने वाले उद्र नामक मत्स्य के चर्म से निष्पन्न पेस'। सिन्धु देश में होने वाले पशु विशेष के चर्म से निष्पन्न पैसल जिस पर पेस चर्म के बेलबूटे कढ़े हों, कनककान्त'92 जिसकी किनारियां सुनहरी हों विवभ अर्थात् चीते की चर्म से निष्पन्न आभरण विचित्र'93 पत्र, चन्द्रलेखा, स्वस्तिक, घंटिका और मौक्तिक आदि अनेक नमूनों से निष्पन्न आदि वस्त्रों का उल्लेख जैनसूत्रों में प्राप्त होता है। 94 पट्ट|95 तथा इष्य का मूल्य एक सहस्त्र आंका जाता था। विजय दूष्य ऐसा वस्त्र था जो शंख, कुंद, जलधारा और समुद्रफेन के समान श्वेतवर्ण का होता था।197