Book Title: Jain Agam Itihas Evam Sanskriti
Author(s): Rekha Chaturvedi
Publisher: Anamika Publishers and Distributors P L

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Page 325
________________ आर्थिक दशा एवं अर्थव्यवस्था • 291 त्रास देने के लिए होता था। छुरे, छुरी, कैंची 42 कंटी43 मछली पकड़ने की कुल्हाड़ी और फरसे का निर्माण घरेलू उपयोग तथा धन्धे पालन की सुविधा के लिए होता था। छत्र तथा चामरा 44 का निर्माण देवता तथा राजन्यों के लिए होता था। वर्दी, त्रिशूल, उस्तरे तथा चाकू का उल्लेख सूत्रकृतांग से प्राप्त होता है। 45 सुई का निर्माण कपड़े सीने के लिए किया जाता था।।46 यान, झूले, पालकी, शिविका विशेष तथा घोड़े की काठी का निर्माण होता था। 47 व्यापारी सार्थ148 बनाकर व्यापार हेतु दूर देशों को जाते थे। ___ करछियां,149 करवत,150 पगहा कुएं का फांसी, मुश्क, तीर और कोड़ा। तथा तलवार, ढाल'52 और उस्तरा'53 जैसे घरेलु और सैनिक उपकरणों का निर्माण किया जाता था। छोटे शिल्पी और कर्मकर दैनिक उपयोग की अनेक वस्तुओं का निर्माण करते थे। लुहार बाल उखाड़ने की चिमटी|54 सौन्दर्य प्रिय महिलाओं के लिए, सुई, हंसिया, मूसल तथा इमामदस्ते'55 तथा सलाखों।56 का निर्माण करते थे, बढ़ई लकड़ी की खड़ाऊं,157 चौकी, पर्थक, शैया,158 हत्थे वाली कुर्सी और बैठने की चौकी!59 बनाते थे। घोड़े की काठी|60 भी यही बनाते थे। बांस के सूप61 बनाये जाते थे। बर्तन वाले ड्रम, रामझारे,162 हुक्के163 बनाते थे। मिट्टी के कमोड़ भी बनाये जाते थे।164 भाण्ड और उपकरणों165 में भिक्षापात्र166 तथा चिमटा167 के निर्माण के उल्लेख भी प्राप्त होते हैं। __कुछ लोग जन-सामान्य के मनोरंजन से सम्बन्धित व्यवसाय भी करते थे। यह नर्तक, वादक, अभिनेता और कवि के रूप में विख्यात थे। कुछ व्यक्ति इनकी कला के उपकरण जैसे प्रसाधन सामग्री, धुंघरु तथा वाद्य आदि के निर्माण का कार्य करते थे। __आगम कालीन जन जीवन सुरुचि और सम्पन्नता की दृष्टि से अतिविकसित था। यह प्रामाणिक रूप से कहा जा सकता है। नाट्य, गीत और वाद्य मनोरंजन के साधन थे।।68 अनेक प्रकार के वाद्य बनाए जाते थे तथा उन पर स्वर, राग और रागिनियां बजाई जाती थीं। वीणा, तूर्य, नगाड़ा तथा पातृपतह,169 वेणु, सितार170 तथा वीण एवं बांसुरी।। जैसे वाद्य बजाने की चर्चा जैन ग्रन्थ सूत्रकृतांग में आई है। वीणा, विपांकी वदवीसक, तुन्नाक, पन्नाक, तुम्ब, विनिका, घंकुण ताल, लट्टिय, मृदंग, नन्दी-मृदंग तथा झल्लरी जैसे वाद्य भी लोकप्रिय थे।।72 दुंदभि, तुरही, नगाड़ा, तबले, मुरग, मृदंग, सामागा-गामागा, तूरिय, झांझ, मंजीरा, बिगुल आदि वाद्यों का उल्लेख उस समय की कला प्रिय परिष्कृत संस्कृति को प्रतिबिम्बित करता है।।73

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