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आर्थिक दशा एवं अर्थव्यवस्था • 289
व्यवसाय तथा उद्योग
जैन साहित्य से तत्कालीन भारतीय व्यवसायिक स्थिति पर प्रकाश पड़ता है। आगम काल में व्यवसाय और उद्योगों की बड़ी उन्नति हुई थी। इस समय भारत में संगठित राज्य स्थापित हुए तथा नगर सभ्यता का विकास आरम्भ हुआ। इस युग से इन व्यवसायों की यह विशेषता देखने को मिलती है कि पुत्र अपने पिता के व्यवसाय में दक्ष होने का प्रयत्न करता है। वंशानुगत प्रवृत्ति के साथ शिल्प के स्थानीकरण की भावना भी पायी जाती है।
शिल्पियों ने अपनी शालाएं बना रखी थीं। शिल्पशालाओं में कुम्भकारशाला, लोहकारशाला, पण्यशाला आदि नाम प्राप्त होते हैं। बढ़ई और लोहार" का व्यवसाय अति उन्नत था। नाई,92 रंगरेज, धोबी,94 और मालाकार भी अपने व्यवसायों में प्रतिष्ठित थे। दर्जी,96, शीशे के रोगन का काम करने वाला,” गोपाल, भाण्डपाल, गायों और किराने के स्वामी, का उल्लेख मिलता है। लकड़ी की नाव बनाने का भी व्यवसाय होता था। चमड़े के जूते,100 नशीले द्रव्य भी बनाये और बेचे जाते थे। प्रशासनिक व्यवसायों में निगम शब्द व्यापारिक केन्द्र के लिय प्रयुक्त होता था।102 ग्वाला, गड़रिया, शिकारी, मछुआरा, कसाई,103 तथा बहेलिया|04 जैसे कर्मकारों का उल्लेख भी जैन सूत्रों में प्राप्त होता है। बांस की टोकरी बनाने वाले, सींकों का कार्य105 करने वाले, पंखे बुनने वाले हीन शिल्पियों की चर्चा भी प्राप्त होती है। बाजे बनाने वाले, कपड़े की गेंद बनाने वाले, कुर्सी बुनने वाले, लकड़ी की कुर्सी बनाने वाले, चन्दन की खड़ाऊ बनाने वाले,106 तथा धागे से वस्त्र बुनने बाले107 तभाग या तन्तुवाय भी इसी श्रेणी के अन्तर्गत आते हैं।
चोर,108 उचक्के और सेंधमार,109 जुआरी 10 अपनी आजीविका अनुचित साधनों से प्राप्त करते थे।
कल्पसूत्र से हमें सूंघनी बनाने बनाने वाले, खिलाड़ी, नर्तक, रस्सी पर नाचने वाले, कुश्तीबाज, कथावाचक, चारण, अभिनेता, संदेशवाहक, लंख, शहनाईवादक तथा बांसुरी वादक के विषय में जानकारी प्राप्त होती है।'
कुम्हार, लुहार, चित्रकार, तन्तुवाय, नाई प्रत्येक की व्यासायिक शाखाएं थीं, जहां इन व्यवसायों का प्रशिक्षण दिया जाता था।12 कृषि, वाणिज्य और व्यवसाय स्वयं विकसित थे। स्त्रियां नृत्य तथा संगीत से भी आजीविका चलाती थीं।।13 __आचारांगसूत्र में दुकानों, कारखानों और पलाल मण्डपों के विषय में ज्ञान प्रापत होता है। 4 गाड़ीवान15 गाड़ियों में सामान भरकर विक्रय हेतु ले जाते थे। ग्राम रक्षक। इन सबकी सुरक्षा का प्रबन्ध करते थे। गोपाल और भाण्डपाल||5 गाय तथा अन्य पशुओं व बर्तनों का व्यापार करते थे।