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298 • जैन आगम : इतिहास एवं संस्कृति
अपेक्षाओं और कर्मों की दासता से मुक्त कर उसे इस बात का अवकाश प्रदान करता है कि वह आत्मोचित जीवन की प्राप्ति के लिए प्रयास कर सके। इसमें सन्देह नहीं कि ऐसी आर्थिक स्थिति जो मनुष्य को दासता, कृषि दासता और मजदूरी की घोर दरिद्रता और सिर्फ दूसरे के लिए कमरतोड़ परिश्रम में नाथे हुए पशु जीवन से उबारती है और उसे आराम, अवकाश, स्वच्छन्दतां और सामाजिक बराबरी देती है अवश्य ही मानवीय हित की अवस्था मानी जानी चाहिए।
खाद्य पदार्थ
सुख की खोज मानव का शाश्वत लक्ष्य है। जीवित रहने और सुखी रहने में अभेदात्मक सम्बन्ध है। दोनों ही प्रवृत्तिशील मनुष्य के समवेत लक्ष्य हैं। न तो मानव क्षणिक सुख में जीना चाहता है और न ही चिरकाल तक दुख में। सुख संवेदन का एक आयाम है जिव्हा सुख। वैचित्र्य संवलित आस्वाद सुख का अनुसन्धान सामाजिक जीवन की आधार पीठिका पर अलंकरण है।
जैनसूत्रों में चार प्रकार के भोजन का उल्लेख उपलब्ध है-अशन, पान, खाद्य तथा स्वाद्य। 10 जैनसूत्रों में एक ओर नीरस और रुक्ष भोजन की चर्चा है तो दूसरी ओर विविध स्वादमय जैसे तीते, कडुवे, कसैले, खट्टे, मीठे और नमकीन12 भोजन की चर्चा है। भोज्य पदार्थों में दूध, दही, मक्खन,313 घी; तेल,14 मधु, मांस, मदिरा15 शक्कर, बूरा16 आदि की चर्चा प्राप्त होती है। ___ पकवान्नों के अन्तर्गत शुष्कुली,317 (संकुली), जलेबी अथवा लूची, पुए 18 और श्रीखण्ड (शिखरिणी)319 तथा तिलपपड़ी के नाम मिलते हैं। ___ अन्य व्यंजनों में ओदानपाक320 (मीठे चावलों से तैयार किया भोजन), क्षीर321 (खीर) शर्बत,322 (शक्कर का रस) मुद्गमाशादि323 मांसाहारी व्यंजन थे।
सत्तू/24 ठण्डा भात,325 मन्थु (बेर का चूर्ण),326 दलिया 27, ओसामन28 अन्य लोकप्रिय आहार थे।
नारियल,329 गन्ना,330 खजूर और दाख31 प्राय: खाये जाते थे। भोजन सुस्वाद बनाने के लिए विविध मसालों का प्रयोग किया जाता था।32 लहसन33 और मक्खन34 भी इस हेतु से प्रयुक्त होते थे।
जौ का पानी,335 कांजी का पानी36 तथा पान-सुपारी37 भोजन पचाने के लिए पीये और खाये जाते थे।
विविध आसव और प्रधान सुराओं के अन्तर्गत सुरा, सीधु, मधु, और मैरेयक आती थीं जो अति कसैली होती थीं।338 जैन साधु के लिए मांस भक्षण व मद्यपान सर्वथा निषिद्ध था। जैनाचार में मदिरापान हेय दृष्टि से देखा जाता था। कर्मफल के प्रसंग में मृगापुत्र बताता है कि पूर्व जन्म में उसे मदिराएं प्रिय थीं यह याद दिला