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आर्थिक दशा एवं अर्थव्यवस्था • 301 थे।37 आगम काल में गंगा के निचले मैदानों में लोहे के फाल के कारण बड़े बड़े खेत बने। एक एक परिवार के पास इतनी भूमि आ गई जिसे वह स्वयं नहीं जोत सकता था। अत: सम्पन्न घरों की खेती चलाने के लिए दासों और कम्मकरों की आवश्यकता पड़ी। किन्तु इन दासों और कम्मकरों की दशा बड़ी हेय थी। जैनग्रन्थों में दासों, नौकरों पेस्स और भारवाहक पशुओं को एक ही कोटि में रखा गया है।378
जैन स्रोतों से ज्ञात होता है कि मृतक चार प्रकार के होते थे379
(1) दिवसभयग-जो दैनिक मजदूरी पर काम करते थे। (2) जातभयग-जो यात्रा भर के लिए रखे जाते थे। (3) उच्चताभयग-निर्णीत समय पर काम पूरा करने के लिए घण्टों के हिसाब
से ठेके पर रखे जाते थे। (4) कबाल भयग-भूमि खोदने वाले जिन्हें किये काम के अनुपात में भुगतान
किया जाता था।
जैनग्रन्थों से ज्ञात होता हे कि प्रेष्यों, दूत या नौकर को छड़ी मार-मार कर काम करने के लिए कहा जाता था।380 जब निर्दोष कामगारों की यह दशा थी तब अपराधियों की दशा कैसी रही होगी? सूत्रकृतांग से ज्ञात होता है कि श्रमजीवियों के छोटे-छोटे अपराध के लिए भी उन्हें अत्यन्त कठोर दण्ड दिये जाते थे। कोई व्यक्ति अपने आश्रितों को छोटे-छोटे अपराध के लिए भी कठोर दण्ड दे सकेगा अर्थात् उसके बाल नोचेगा, उसे पीटेगा या लोहे के शिकंजों में और बेड़ियों में जकड देगा। काठ में उसके पांव ठोक देगा. उसे कारा में बन्द कर देगा। उसके हाथ पांव को कड़ी में जकड़ देगा, उन्हें तोड़ देगा या शरीर के किसी भी अंग को काट देगा।81 उसकी टांगें चीर देगा, आंखें और दांत निकाल लेगा, उसे रस्सी से लटका देगा।382 उसके ऊपर घोड़े दौड़ा देगा, चाक पर घुमा देगा, सूली पर चढ़ा देगा, उसे चीर देगा, उसके घावों पर तेजाब उंडेल देगा, गंडासे से काट देगा, किसी भी प्रकार की भीषण मृत्यु का शिकार बना देगा।383
खेती में श्रम की आवश्यकता केवल बड़े-बड़े कृषकों और गृहपतियों को ही नहीं थी बल्कि साधारण गृहस्थों को भी एकाध दास अथवा कर्मकर की जरूरत होती थी। कृषकों के कर देने के कारण महाजनपदों अथवा बड़े राज्यों का जन्म हुआ जिनकी सेवा और घरेलू काम के लिए भी दासों और कर्मकरों की आवश्यकता थी। राजाओं के हथियार बनाने के लिए और कृषकों के हथियार बनाने के लिए खेतिहर मजदूर और शिल्पी लगाये जाने लगे। उन्हें अपने श्रम के अनुरूप पारिश्रमिक नहीं मिलता था और उनके श्रम का प्रतिफल विशेष रूप से