Book Title: Jain Agam Itihas Evam Sanskriti
Author(s): Rekha Chaturvedi
Publisher: Anamika Publishers and Distributors P L

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Page 334
________________ 300 • जैन आगम : इतिहास एवं संस्कृति विभिन्न आभूषण धारण करने के अतिरिक्त वह सिन्दूर, लाल, हरताल तथा सुरमे का प्रयोग सौन्दर्य प्रसाधन में करती थीं।354 अंजन के लिए विशेष रूप से छोटी छोटी डिब्बी बनती थीं।355 बिछौने, पाट, पीड, आसन, पैर पौंछन के कम्बल, शैया, संस्तारक, बांहों की कुर्सी और बैठने वाली चौकी, पर्यंक आदि उनके आवासों को सजाने और जीवन को सुविधामय बनाने के उपकरण थे।350 धनिकों की स्त्रियां आवागमन पालकी अथवा शिविका में करती थीं।57 गाड़ी का भी उल्लेख प्राप्त होता है।358 नौका विहार:59 तथा रथ यात्रा60 की भी चर्चा प्राप्त होती है। चमड़े के जूते पहनने 61 और धूम्रपान से भी समाज परिचित था।362 ___गन्ध और सुगन्ध का प्रयोग बहुतायत से होता था।363 मनोरंजन के लिए नाट्य, गीत और वाद्य प्रमुख साधन थे।64 उसके अतिरिक्त आख्यायिका, दण्डयुद्ध और मुष्टियुद्ध से भी जी बहलाया जाता था।365 विविध उपहारों का आदान-प्रदान किया जाता था।366 सामान्यत: लोगों के पास चल और अचल दोनों प्रकार की सम्पत्ति होती थी।67 यद्यपि जैन और बौद्ध धर्म अपरिग्रह और अहिंसा का वातावरण बना रहे थे किन्तु समाज में निवृत्ति के साथ-साथ प्रवृत्ति लक्षण भी विद्यमान था। संसार त्याग और नैष्यकर्म के उदात्त आदर्श यद्यपि चरितार्थ होने लगे थे किन्तु सृजन और उपयोग की प्रवृत्ति लक्षण परम्परा क्षीण नहीं हुई थी। समाज में अब भी यज्ञों की परम्परा थी जिसमें यूप, यज्ञ स्तम्भ, काण्ड368 और कण्डे369 की अग्नि का उपयोग होता था। ऐसे धनिक भी समाज में विद्यमान थे जो दस लाख गायों को दान में देते थे।70 वहीं दूसरी ओर जुआरी, चोर, शठ, गिरहकट, लुटेरे और बटमार मार्गों में लूट करते थे।371 अत: यात्रा सुरक्षित न थीं। पुरुष तथा स्त्री दास रखना समाज में सम्पन्नता का चिन्ह माना जाता था।72 नैतिकता की बारम्बार दुहाई देने पर भी समाज में रिश्वत, धोखा, छल, कपट, षड्यन्त्र और बेईमानी का उतना ही बोलबाला था।373 समाज के निम्नवर्ग की दशा उल्लेखनीय रूप से शोचनीय थी। यद्यपि महावीर और बुद्ध ने बड़ी सहानुभूतिपूर्वक इनके उत्थान का प्रयास किया था। चाण्डालों को बड़ी घृणा से देखा जाता था और उनकी बस्ती नगर से बाहर बनाई जाती थी।374 चण्डाल और बोक्कस श्मशान पर कार्य करते थे।75 दासों की दशा भी बहुत खराब थी। समाज का एक बड़ा धनिक वर्ग अपने ही समान मानव को दास76 बनाकर उसका शोषण कर रहा था। दास और कार्मिक खेतों पर काम करते थे। दास को कोई वेतन नहीं मिलता था जबकि भोगिल्ल अर्थात् कर्मकार को वेतन के रूप में उपज का छठा भाग मिलता था। दास और भाड़े के श्रमिक खेतों के छोटे-छोटे टुकड़ों में कार्य करते

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