Book Title: Jain Agam Itihas Evam Sanskriti
Author(s): Rekha Chaturvedi
Publisher: Anamika Publishers and Distributors P L

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Page 333
________________ आर्थिक दशा एवं अर्थव्यवस्था • 299 कर उसे खून पिलाया गया था।39 जैन सूत्रों के संखासूत्रों में संखड़ियों (भोजों) का उल्लेख है जहां जीवों को मारकर उनके मांस को अतिथियों को परोसा जाता था।340 उत्तराध्ययनसूत्र 41 से ज्ञात होता है कि उस समय विवाह, प्रीतिभोज आदि पर मांस के विविध व्यंजन बनाये जाते थे। भगवान अरिष्टनेमि उग्रसेन की कन्या राजीमति से विवाह करने गये तो पाकशाला से आने वाले पशुक्रन्दन सुनकर वैरागी हो गये। सूत्रकृतांग से ज्ञात होता है कि बौद्धों और हस्तितापसों के साथ शास्त्रार्थ करते हुए आर्द्रकुमार ने मांस-भक्षण को निन्दनीय बताया था।42 जैन साधु के लिए मांस भक्षण सर्वथा निषिद्ध था। मांस-भक्षण की गणना उस पाप से की गयी है जिसके फल जन्म-जन्मानतर तक भोगने पड़ते हैं। अपने पूर्वजन्म के कर्मों का स्मरण करते हुए मृगापुत्र कहता है कि उसे शूल में पिरोया हुआ, टुकड़े-टुकड़े मांस प्रिय था यह याद दिलाकर उसके ही शरीर का मांस काटकर और लाल तपाकर उसे खिलाया गया। जलती हुई चर्बी खिलाई गयी।43 यद्यपि ब्राह्मण परम्परा में मांसभक्षण शास्त्रसम्मत था किन्तु यहां भी अन्य जीवों के प्रति इसे अपराध मानकर इसके प्राश्यचित का विधान था।344 सामान्य अवस्था आगम काल में जनसामान्य की दशा सन्तोषजनक कही जा सकती है। सम्भवत: समाज में वर्गभेद विद्यमान था। जहां एक ओर धनिक विविध सुविधाओं और आनन्दों का उपभोग कर रहे थे वहीं निम्नवर्ग, जिसमें हीन शिल्पकार तथा कर्मकर थे, की दशा अत्यन्त शोचनीय थी। समाज के वर्गों में ब्राह्मण, राजा, व्यापारी तथा जनसामान्य को पृथक दर्शाया गया है।345 राजा वेणि के व्यक्ति व्यापारियों द्वारा आयातित बहुमूल्य वस्त्र पहनते थे।46 गाड़ी, यान, झूले, पालकी, कोच, शिविका आदि का वह उपभोग करते थे।47 शयन, आसन. पान, भोजन विभिन्न प्रकार के खाद्य और स्वाद्य पदार्थ जीवन की अतृप्ति को बढ़ा रहे थे।348 __ धनिक अपने आवासों को बहुमूल्य सुन्दर वस्त्रों के पर्दो49 से सजाते थे तथा उनके गृह मनोहर स्त्रियों से आकीर्ण, माल्य और धूप से सुवासित होते थे तथा उनके किवाड़ श्वेत चन्दोवा से युकत बनाते थे।350 ___ स्त्रियां अत्यन्त श्रृंगार प्रिय थीं। बाल उखाड़ने की चिमटी, कंघा, बालों को बांधने के फीते तथा दर्पण की चर्चा हमें जैन सूत्र में प्राप्त होती है। 51 दांतुन तथा झामों का उल्लेख वह अंगों को कान्तिमान बनाने के लिए करती थीं।352 तैल मर्दन और दन्त प्रक्षालन का उल्लेख भी प्राप्त होता है।353

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