Book Title: Jain Agam Itihas Evam Sanskriti
Author(s): Rekha Chaturvedi
Publisher: Anamika Publishers and Distributors P L

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Page 341
________________ आर्थिक दशा एवं अर्थव्यवस्था • 307 173. कल्पसूत्र एस०बी०ई०, पृ० 253-54 1021 174. आचारांग, 2/5/1/51 175. कल्पसूत्र, 1/4/631 176. वही। 177. वही। 178. आचारांग, 2/5/1/61 179. वही, 2/5/1/41 180. उत्तराध्ययन, 19/561 181. आचारांग, II 25 आत्मारामजी पृ० 13388 दीक्षा के पूर्व भगवान श्रमण महावीर को नासिका की वायु से हिलने वाले विशिष्ट नगरों में निर्मित, कुशल कारीगरों से स्वर्णतार के बने हुए हंस के समान श्वेत वस्त्र पहनाये गये। 182. शेर, चीता, तेंन्दुआ, गाय और हरिण की खाल से बने वस्त्र द्र० आचारांग सूत्र एस०बी०ई० जि० 22, II 5/1/3-6 पृ० 157-58। 183. निशीथसूत्र, 7/12 की चूर्णि के अनुसार तोसाली देश में बकरों के खुरों में लगी हुई शैवाल से वस्त्र बनाये जाते थे। 184. निशीथ चूर्णि के अनुसार काक देश में होने वाले काकजंघा नामक पौधे के तन्तुओं से बनाये जाते थे। 185. आचारांग के टीकाकार के अनुसार यह वस्त्र गौड़ देश में उत्पन्न एक विशेष प्रकार की कपास से बनते थे। 186. अर्थशास्त्र, 2/11/29/112 के अनुसार यह मगध पुण्ड्रक तथा सुवर्ण कुड्यक इन तीन देशों में उत्पन्न होता था। 187. आचारांग के टीकाकार शीलांक ने इसका अर्थ ऊंट की खाल से बने वस्त्र से किया है। 188. परिमुज्जमाणा कड-कडेति, निशीथ चूर्णि, 71 189. यह वस्त्र बकरे अथवा चूहे के बालों से बनता था। 190. आचारांगसूत्र एस०बी०ई० जि० 22, II 5/1 पृ० 1581 191. वही। 192. आचारांग आत्माराम जी, ii पृ० 13881 193. वही, एस०बी०ई० जि० 22,ii5/1/51 पत्रिक चंदलेहिकस्वस्तिकघंटिकमौक्तिक मादी हि मंडिता-निशीथ चूर्णि। 194. निशीथचूर्णि 195. वही, अनुयोगद्वार सूत्र 37 में कीटज वस्त्रों के पांच भेद बताये गये हैं-पट्ट, मलय, अंसुग, चीनांसुय और किमिराग। टीकाकार के अनुसार किसी जंगल में संचित किये हुए मांस के चारों ओर एकत्रित कीड़ों से पट्ट वस्त्र बनाये जाते थे। मलय वस्त्र मलयदेश में होता है। अंशुक चीन के बाहर तथा चीनांशुक चीन में होता है। अंशुक कोमल तंतुओं से बना रेशम है जबकि चीनांशुक कोआ रेशम या चीनी रेशम से बनता है। रेश महाभारत में कीटज कहा गया गया है जो चीन या बाहलीक से आता है। मैकन्डल के अनुसार कच्चा रेशम एशिया के आन्तरिक मार्गों में तैयार किया जाता था। द्र० ए०एन० उपाध्ये, बृहत्कथा कोष की प्रस्तावना, पृ० 881 196. आचारांग सूत्र, i, 15/201 197. राजप्रश्नीय 43 पृ० 100। द्र० कल्पसूत्र एस० बी०ई० जि० 22, पृ० 252-561

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